सोमवार, 8 अगस्त 2016

523. उसने फ़रमाया है (तुकांत)

उसने फ़रमाया है   

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ज़िल्लत का ज़हर कुछ यूँ वक़्त ने पिलाया है   
जिस्म की सरहदों में ज़िन्दगी दफ़नाया है। 

सेज पर बिछी कभी भी जब लाल सुर्ख कलियाँ   
सुहागरात की चाहत में मन भरमाया है। 

हाथ बाँधे ग़ुलाम खड़ी हैं खुशियाँ आँगन में   
जाने क्यूँ तक़दीर ने उसे आज़ादी से टरकाया है। 

हज़ार राहें दिखतीं किस डगर में मंज़िल किसकी   
डगमगाती क़िस्मत से हर इंसान घबराया है।    

'शब' के सीने में गढ़ गए हैं इश्क़ के किस्से  
कहूँ कैसे कोई ग़ज़ल जो उसने फ़रमाया है।    

- जेन्नी शबनम (8. 8. 2016)
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7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 10 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-08-2016) को "तूफ़ान से कश्ती निकाल के" (चर्चा अंक-2430) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. डगमगाती किस्मत से हर इंसान घबराया है !

    बहुत सुन्दर गजल

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  4. sry kal aa nahi paai achchhe links ..thanks shamil karne ke liye ...

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