जागा फागुन
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1.
होली कहती-
खेलो रंग गुलाल
भूलो मलाल।
2.
जागा फागुन
एक साल के बाद,
खिलखिलाता।
3.
सब हैं रँगे
फूल तितली भौंरे
होली के रंग।
4.
खेल तो ली है
रंग-बिरंगी होली
रँगा न मन।
5.
छुपती नहीं
होली के रंग से भी
मन की पीर।
6.
रंग अबीर
तन को रँगे, पर
मन फ़क़ीर।
7.
रंगीली होली
इठलाती आई है
मस्ती छाई है।
8.
उड़के आता
तन-मन रँगता
रंग गुलाल।
9.
मुर्झाए रिश्ते
किसकी राह ताके
होली बेरंग।
10.
रंग अबीर
फगुनाहट लाया
मन बौराया।
- जेन्नी शबनम (12. 3. 2017)
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 14 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (13-03-2017) को
जवाब देंहटाएं"मचा है चारों ओर धमाल" (चर्चा अंक-2605)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत हाइकु...होली की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएं
सुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएंMere blog ki new post par aapka swagat hai.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " ब्लॉगर होली मिलन ब्लॉग बुलेटिन पर “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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