बुधवार, 18 अप्रैल 2018

572. विनती (क्षणिका)

विनती   

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समय की शिला पर   
जाने किस घड़ी लिखी जीवन की इबारत मैंने   
ताउम्र मैं व्याकुल रही और वक़्त तड़प गया   
वक़्त को पकड़ने में 
मेरी मांसपेशियाँ कमज़ोर पड़ गईं   
दूरी बढ़ती गई और वक़्त लड़खड़ा गया   
अब मैं आँखें मूँदे बैठी समय से विनती करती हूँ-   
वक़्त दो या बिन बताए   
सब अपनों की तरह मेरे पास से भाग जाओ।  

- जेन्नी शबनम (18. 4. 2018)
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2 टिप्‍पणियां:

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    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    निमंत्रण

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