जीवन मेरा (चोका)
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मेरे हिस्से में
ये कैसा सफ़र है
रात और दिन
चलना जीवन है,
थक जो गए
कहीं ठौर न मिला
चलते रहे
बस चलते रहे,
कहीं न छाँव
कहीं मिला न ठाँव
बढते रहे
झुलसे मेरे पाँव,
चुभा जो काँटा
पीर सह न पाए
मन में रोए
सामने मुस्कुराए,
किसे पुकारें
मन है घबराए
अपना नहीं
सर पे साया नहीं,
सुख व दु:ख
आँखमिचौली खेले
रोके न रुके
तंज हमपे कसे,
अपना सगा
हमें छला हमेशा
हमारी पीड़ा
उसे लगे तमाशा,
कोई पराया
जब बना अपना
पीड़ा सुन के
संग-संग वो चला,
किसी का साथ
जब सुकून देता
पाँव खींचने
जमाना है दौड़ता,
हमसफर
काश ! कोई होता
राह आसान
सफर पूरा होता,
शाप है हमें
कहीं न पहुँचना
अनवरत
चलते ही रहना।
यही जीवन मेरा।
- जेन्नी शबनम (26. 3. 2019)
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-03-2019) को "दिल तो है मतवाला गिरगिट" (चर्चा अंक-3290) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
अनीता सैनी
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" कवि एवं साहित्यकार
सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखण्ड सरकार,
सन् 2005 से 2008 तक।
टनकपुर रोड, ग्राम-अमाऊँ
तहसील-खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर,
उत्तराखण्ड, (भारत) - 262308.
Mobiles:
7906360576, 7906295141, 09997996437,
Website - http://uchcharan.blogspot.com/
E-Mail - roopchandrashastri@gmail.com
अपना सगा
जवाब देंहटाएंहमें छला हमेशा
हमारी पीड़ा
उसे लगे तमाशा,
कोई पराया
जब बना अपना
पीड़ा सुन के
संग-संग वो चला,
किसी का साथ
जब सुकून देता
पाँव खींचने
जमाना है दौड़ता,
बहुत ही मार्मिक...बहुत ही हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....।