अलविदा
***
तपती रेत पर पाँव के नहीं
जलते पाँव के ज़ख़्मों के निशान हैं
मंज़िल दूर, बहुत दूर दिख रही है
पाँव थक चुके हैं
पाँव और मन जल चुके हैं
हौसला देने वाला कोई नहीं
साँसें सँभालने वाला कोई नहीं।
यह तय है
ज़िन्दगी वहाँ तक नहीं पहुँच पाएगी
जहाँ पाँव-पाँव चले थे
जहाँ सपनों को पंख लगे थे
जहाँ से ज़िन्दगी को सींचने
बहुत दूर निकल पड़े थे।
आह! अब और सहन नहीं होता
तलवे ही नहीं, आँतें भी जल गई हैं
जल की एक बूँद भी नहीं
जिससे अन्तिम क्षण में तालू तर हो सके
उम्मीद की अन्तिम तीली बुझने को है
आख़िरी साँस अब उखड़ने को है।
सलाम उन सबको
जिनके पाँव ने उनका साथ दिया
मेरे उन सपनों, उन अपनों
उन यादों को अलविदा।
-जेन्नी शबनम (12.5.2020)
____________________
सपने फिर लौटेंगे। हौसला बना रहें। सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसपने ही हौसला देते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सामंयिक और मार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहोंसले इतने है तभी तो निकल पड़े हैं सपनो को ज़िन्दा रखे ...
जवाब देंहटाएंसमय बदलेगा ...
मार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअति उत्तम रचना ,मार्मिक रचना ,आपका ब्लॉग पर आना अच्छा लगा ,आपकी हृदय से आभारी हूँ ,नमस्कार
जवाब देंहटाएं