शुक्रवार, 8 मई 2020

661. अनुभूतियों का सफ़र

अनुभूतियों का सफ़र 

*** 

अनुभूतियों के सफ़र में   
सम्भावनाओं को ज़मीन न मिली  
हताश हूँ, परेशान हूँ, मगर हार की स्वीकृति 
मन को नहीं सुहाती।   

फिर-फिर उगने और उड़ने के लिए   
पुरज़ोर कोशिश करती हूँ    
कड़वे-कसैले से कुछ अल्फ़ाज़, मन को बेधते हैं   
फिर-फिर जीने की तमन्ना में   
हौसलों की बाग़वानी करती हूँ। 
 
सँभलने और स्थिरता की मियाद   
पूरी नहीं होती कि सब ध्वस्त हो जाता है
जाने कौन-सा गुनाह था या किसी जन्म का शाप   
अनुभूतियों के सफ़र में महज़ कुछ फूल मिले   
शेष काँटे ही काँटे   
जो वक़्त-बेवक्त चुभते रहे, मन को बेधते रहे।
   
पर अब सम्भावनाओं को जिलाना होगा   
उसे ज़मीन में उगाना होगा   
थके हों क़दम, मगर चलना होगा   
आसमान छिन जाए, मगर   
ज़मीन को पकड़ना होगा। 
  
जीवन की अनुभूतियाँ सम्बल हैं और   
जीवन की सम्भावना भी।


-जेन्नी शबनम (7.5.2020) 
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10 टिप्‍पणियां:

  1. अनुभूतियों के साथ ही सफर सहज होता है।
    सुन्दर रचना

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  2. प्रभावी और सुंदर रचना
    बधाई

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  3. हौसला बना रहे। शुभकामनाएं।

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  4. प्रेरक और प्रभावशाली सृजन ।

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  5. संभावनाएं ही तो जीवित रखती हैं ... आशा ण हो तो निराशा ही रहती है ...
    प्रभावी रचना ...

    जवाब देंहटाएं

  6. कड़वे कसैले से कुछ अल्फ़ाज़ मन को बेधते हैं
    फिर-फिर जीने की तमन्ना में
    हौसलों की बाग़वानी करती हूँ
    सँभलने और स्थिरता की मियाद
    पूरी नहीं होती, कि सब ध्वस्त हो जाता है।
    जाने कौन सा गुनाह था, या किसी जन्म का शाप
    अनुभूतियों के सफ़र में महज़ कुछ फूल मिले
    शेष काँटें ही काँटें
    जो वक़्त बेवक्त चुभते रहे, मन को बेधते रहे।
    पर अब, संभावनाओं को जिलाना होगा
    उसे ज़मीन में उगाना होगा
    थके हों क़दम मगर चलना होगा
    आसमान छिन जाए मगर
    ज़मीन को पकड़ना होगा।
    जीवन की अनुभूतियाँ संबल है और
    जीवन की संभावना भी।
    वाह बहुत बढ़िया लिखा है, प्रभावशाली सृजन,

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