फूलवारी
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जब भी मिलने जाती हूँ
कसकर मेरी बाँहें पकड़, कहती है मुझसे-
अब जो आई हो, तो यहीं रह जाओ
याद करो, जब अपने नन्हे-नन्हे हाथों से
तुमने रोपा था, हम सब को
देखो कितनी खिली हुई है बगिया
पर तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता
शहर में न तो फूल है न फूलवारी
रूक जाओ न यहीं पर
बचपन के दिनों-सी बौराई फिरना।
- जेन्नी शबनम (5. 6. 2020)
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सार्थक और महकती-मोहक रचना।
जवाब देंहटाएंGood
जवाब देंहटाएंपर्यावरण के संदर्भ में बहुत बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबधाई
आपने जो लिंक भेजा उसे क्लिक करने पर यह लिंक नहीं खुल रहा है
काश, कि रुकना हो सकता.
जवाब देंहटाएंफूल भी तो प्रेम करते हैं ... जानते हैं उनके सृजन करने वाले को ...
जवाब देंहटाएंकाश एक बगिया हर कोई साथ रख पाता ...
सुंदर भावमय ...👍
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना
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