शुक्रवार, 5 जून 2020

670. फूलवारी (क्षणिका)

फूलवारी 

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जब भी मिलने जाती हूँ   
कसकर मेरी बाँहें पकड़, कहती है मुझसे-   
अब जो आई हो, तो यहीं रह जाओ   
याद करो, जब अपने नन्हे-नन्हे हाथों से   
तुमने रोपा था, हम सब को   
देखो कितनी खिली हुई है बगिया   
पर तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता   
शहर में न तो फूल है न फूलवारी   
रूक जाओ न यहीं पर   
बचपन के दिनों-सी बौराई फिरना।  

- जेन्नी शबनम (5. 6. 2020) 
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7 टिप्‍पणियां:

  1. पर्यावरण के संदर्भ में बहुत बहुत सुंदर रचना
    बधाई

    आपने जो लिंक भेजा उसे क्लिक करने पर यह लिंक नहीं खुल रहा है

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  2. फूल भी तो प्रेम करते हैं ... जानते हैं उनके सृजन करने वाले को ...
    काश एक बगिया हर कोई साथ रख पाता ...

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