जीने का करो जतन
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काँटों की तक़दीर में, नहीं होती कोई चुभन
दर्द है फूलों के हिस्से, मगर नहीं देते जलन।
शमा तो जलती है हर रात, ग़ैरों के लिए
ख़ुद के लिए जीना, बस इंसानों का है चलन।
तमाम उम्र जो बोते रहे, पाई-पाई की फ़सल
बारहा मिलता नहीं, वक़्त-ए-आख़िर उनको कफ़न।
उसने कहा कि धर्म ने दे दिया, ये अधिकार
सिर ऊँचा करके, अधीनों का करते रहे दमन।
जुनून कैसा छा रहा, हर तरफ़ है क़त्ल-ए-आम
नहीं दिखता अब ज़रा-सा भी, दुनिया में अमन।
जीने का भ्रम पाले, ज़िन्दगी से दूर हुआ हर इंसान
'शब' कहती ये अन्तिम जीवन, जीने का करो जतन।
जेन्नी शबनम (4. 6. 2021)
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vaah
जवाब देंहटाएंकाँटों की तक़दीर में, नहीं होती कोई चुभन
जवाब देंहटाएंदर्द है फूलों के हिस्से, मगर नहीं देते जलन।
बहुत खूब!! अति सुन्दर ।
जीने का भ्रम पाले, ज़िन्दगी से दूर हुआ हर इंसान
जवाब देंहटाएं'शब' कहती ये अंतिम जीवन, जीने का करो जतन।
वाह !! हर शेर लाज़बाब,जिंदगी जीने का संदेश देती ,सादर नमन आपको
शमा तो जलती है हर रात, ग़ैरों के लिए
जवाब देंहटाएंख़ुद के लिए जीना, बस इंसानों का है चलन।
बहुत सटीक....
लाजवाब गजल
वाह!!!!
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (6 -6-21) को "...क्योंकि वन्य जीव श्वेत पत्र जारी नहीं कर सकते"(चर्चा अंक- 4088) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
अंतिम पल, अंतिम जीवन मान व्यवहार करे आदमी तो कोई समस्या ही नहीं।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना।
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
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जवाब देंहटाएंतमाम उम्र जो बोते रहे, पाई-पाई की फ़सल
बारहा मिलता नहीं, वक़्त-ए-आख़िर उनको कफ़न। ..बहुत कुछ कह गया आपका ये बेहतरीन शेर, उत्कृष्ट रचना ।
बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन दी।
जवाब देंहटाएंसादर
अद्भुत रचना है आपकी! दिल को छू लेने वाली! शब्दों से जो समझ आया, उसे हम सब ने देखा! मैंने सोचा, जो नहीं कहा गया, उस पर भी विचार कर लिया जाए!
जवाब देंहटाएं... क़त्ल-ए-आम... नहीं दिखता अब..
( छिपे हुए वाक्य भी कितना कुछ कह जाते है न, मंज़र आँखों के सामने हो रहा हो, और हम कह दे कि कुछ दिखता ही नहीं अब! सहनशीलता सारी हदें पार कर गयी हो मानो! आँखें इतनी धुंधला चुकी हो सब देखते रहने से, कि आँखों का देखा दिमाग भी नकार चुका है अब!)
.... नहीं दिखता अब.. दुनिया में अमन..
(वास्तविकता स्वीकार चुका हो मानव जब, उसका रुँधा हुआ स्वर अंत में ज़रूर सुनाई देता होगा, की अमन और चैन भी नहीं दिखता)