सोमवार, 15 अगस्त 2022

747. आज़ादी का अमृत महोत्सव

आज़ादी का अमृत महोत्सव 

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नहीं चलना ऐसे   
जब किसी की परछाईं पीछा करे   
नहीं देखना उसे   
जो तुम्हारी नज़रों की तलाश को ख़ुद तक रोके   
नहीं सुनना उसे   
जो तुम्हारी न सुने, सिर्फ़ अपनी कहे   
नहीं निभाना साथ उसके   
जिसका फ़रेब तुम्हें सताता रहे   
नहीं करना प्रेम उससे   
जो बदले में तुम्हारी आज़ादी छीने   
नहीं उलझना उससे, जो साँसों की पहरेदारी करे   
आज़ादी की बात कर साँसें लेना मुहाल करे। 
  
ज़िन्दगी एक बार ही मिलती है   
आज़ादी बड़े-बड़े संघर्षों से मिलती है   
ठोकर मारकर शातिरों को   
जीवन का जश्न जीभरकर मनाओ   
अपनी धरती, अपना आसमाँ, अपना जहाँ   
बेबाक बनकर आज़ादी का लुत्फ़ उठाओ। 
  
आज़ादी की साँसें दिल से दिल तक हो   
आज़ादी की बातें मन से मन तक हो   
जीकर देखो कि कितनी मिली आज़ादी   
किससे कब-कब मिली आज़ादी   
लेनी नहीं है भीख में आज़ादी   
हक़ है, जबरन छीननी है आज़ादी।
   
आज़ादी का यह अमृत महोत्सव   
सबके लिए है, तो तुम्हारे लिए भी है। 

-जेन्नी शबनम (15.8.22) 
(स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगाँठ) 
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6 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलबुधवार (17-8-22} को "मेरा वतन" (चर्चा अंक-4524) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. वाह!बहुत सुंदर सृजन।
    सादर

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  3. ओज और सार्थकता से भरा आह्वान।
    बहुत सुंदर।

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