बुधवार, 1 मई 2024

775. वक़्त आ गया है

वक़्त आ गया है 

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अक्सर सोचती हूँ 

हर बार, बार-बार 

मैं चुप क्यों हो जाती हूँ?

जानती हूँ 

मेरी चुप्पी हर किसी को भा रही है

पर मुझे भीतर से खोखला कर रही है

अन्दर-ही-अन्दर खा रही है। 

 

मैं अनभिज्ञ नहीं किसी सरोका से

स्वयं का हो या संसार का

पर मेरी चुप्पी मुझे धकेल देती है गुमनाम दुनिया में

जहाँ मेरे अस्तित्व का सवाल पैदा हो जाता है

मैं हर बार अपनी खाल में चुपचाप समा जाती हूँ 

अपनी चुप्पी से अपनी ही आहुति देती जाती हूँ 

कोई इससे बाहर नहीं निकालता है

सब छोड़ देते हैं मुझे, मेरी क़िस्मत कहकर। 


पर मैं क्यों ऐसी हूँ?

मन-मस्तिष्क का लावा मुझे जलाता है 

पर यह आग दिखती क्यों नहीं?

क्यों मैं जलती रहती हूँ?

अंगारों पर चलती रहती हूँ 

ख़ुद को आग में जलाती रहती हूँ 

सभी के सामने मुस्कुराती रहती हूँ 

मेरे जलने-रोने से संसार प्रभावित नहीं होता

मैं ही धीरे-धीरे मिटती जाती हूँ

अपने सवाल का जवाब ख़ुद को देती जाती हूँ 

जो निरर्थक है और व्यर्थ भी। 


मुझे अब अपना जवाब सभी को बताना होगा

अपनी चुप्पी को तोड़ना होगा

हर उस सवाल पर लावा उगलना होगा

जो मुझे मिटाता हैजलाता है

अपनी चुप्पी का एहसास मुझे नहीं चाहिए 

मेरी चुप्पी का अर्थ मुझे जतलाना होगा

मुझे क्या-क्या कहना है, समझाना होगा 

मेरी चुप्पी को ज्वालामुखी में बदलना होगा 

अन्यथा मैं जलती रहूँगी, लोग जलाते रहेंगे

मैं मिटती रहूँगी, लोग मिटाते हेंगे। 


अब बस!

चुप्पी को तोड़ने का वक़्त  गया है

अपने मनमाफ़िक जीने का वक़्त  या है

संसार से क़दम ताल मिलाने का वक़्त  गया है।


-जेन्नी शबनम (1.5.2024)

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4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 2 मई 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. बहुत सुन्दर रचना

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