कशमकश
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रिश्तों की कशमकश में ज़ेहन उलझा है
उम्र और रिश्तों के इतने बरस बीते
मगर आधा भी नहीं समझा है
फ़क़त एक नाते के वास्ते
कितने-कितने फ़रेब सहे
बिना शिकायत बिना कुछ कहे
घुट-घुटकर जीने से बेहतर है
तोड़ दें नाम के वे सभी नाते
जो मुझे बिल्कुल समझ नहीं आते।
मगर आधा भी नहीं समझा है
फ़क़त एक नाते के वास्ते
कितने-कितने फ़रेब सहे
बिना शिकायत बिना कुछ कहे
घुट-घुटकर जीने से बेहतर है
तोड़ दें नाम के वे सभी नाते
जो मुझे बिल्कुल समझ नहीं आते।
- जेन्नी शबनम (12.6.2021)
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सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 13 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन...
जवाब देंहटाएंसुन्दर कृति
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