ज़िन्दगी
1.
ज़िन्दगी चली
बिना सोचे-समझे
किधर मुड़े?
कौन बताए दिशा
मंज़िल मिले जहाँ।
2.
बिना सोचे-समझे
किधर मुड़े?
कौन बताए दिशा
मंज़िल मिले जहाँ।
2.
मालूम नहीं
मिलती क्यों ज़िन्दगी
बेइख़्तियार,
डोर जिसने थामे
उड़ने से वो रोके।
3.
मिलती क्यों ज़िन्दगी
बेइख़्तियार,
डोर जिसने थामे
उड़ने से वो रोके।
3.
अब तो चल
ऐ ठहरी ज़िन्दगी!
किसका रस्ता
तू देखे है निगोड़ी
तू है तन्हा अकेली।
4.
ऐ ठहरी ज़िन्दगी!
किसका रस्ता
तू देखे है निगोड़ी
तू है तन्हा अकेली।
4.
चहकती है
खिली महकती है
ज़िन्दगी प्यारी
जीना तो है जीभर
यह सारी उमर।
5.
खिली महकती है
ज़िन्दगी प्यारी
जीना तो है जीभर
यह सारी उमर।
5.
बनी जो कड़ी
ज़िन्दगी की ये लड़ी
ख़ुशबू फैली,
मन होता बावरा
ख़ुशी जब मिलती।
6.
ज़िन्दगी की ये लड़ी
ख़ुशबू फैली,
मन होता बावरा
ख़ुशी जब मिलती।
6.
फिर है खिली
ज़िन्दगी की सुबह
शाम सुहानी,
मन नाचे बारहा
सौग़ात जब मिली।
7.
ज़िन्दगी की सुबह
शाम सुहानी,
मन नाचे बारहा
सौग़ात जब मिली।
7.
नहीं है जानी
नहीं है पहचानी
राह जो चली,
ज़िन्दगी अनजानी
पर नहीं कहानी।
नहीं है पहचानी
राह जो चली,
ज़िन्दगी अनजानी
पर नहीं कहानी।
-जेन्नी शबनम (19.10.24)
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वाह
जवाब देंहटाएंजैसी भी हो, अपनी है ज़िंदगी । कभी झूम के नाचेंगे, कभी तान कर सो जाएंगे !
जवाब देंहटाएं"जिंदगी और जिंदगी की यादगार पर्दा और परदे पे कुछ परछाइयां" सुन्दर रचना, साभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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