बुधवार, 20 नवंबर 2024

782. ज़िन्दगी

ज़िन्दगी


1. 
ज़िन्दगी चली
बिना सोचे-समझे
किधर मुड़े?
कौन बताए दिशा
मंज़िल मिले जहाँ। 

2. 
मालूम नहीं 
मिलती क्यों ज़िन्दगी
बेइख़्तियार,
डोर जिसने थामे
उड़ने से वो रोके। 

3. 
अब तो चल 
ऐ ठहरी ज़िन्दगी!
किसका रस्ता
तू देखे है निगोड़ी
तू है तन्हा अकेली। 

4. 
चहकती है  
खिली महकती है
ज़िन्दगी प्यारी
जीना तो है जीभर
यह सारी उमर। 

5. 
बनी जो कड़ी
ज़िन्दगी की ये लड़ी
ख़ुशबू फैली,
मन होता बावरा
ख़ुशी जब मिलती। 

6. 
फिर है खिली
ज़िन्दगी की सुबह
शाम सुहानी,
मन नाचे बारहा
सौग़ात जब मिली। 

7. 
नहीं है जानी  
नहीं है पहचानी
राह जो चली,
ज़िन्दगी अनजानी
पर नहीं कहानी।

-जेन्नी शबनम (19.10.24)
__________________ 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 21 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. जैसी भी हो, अपनी है ज़िंदगी । कभी झूम के नाचेंगे, कभी तान कर सो जाएंगे !

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  3. "जिंदगी और जिंदगी की यादगार पर्दा और परदे पे कुछ परछाइयां" सुन्दर रचना, साभार

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