रविवार, 15 नवंबर 2009

98. वह अमरूद का पेड़ / Wah Amruud ka Ped (पुस्तक - लम्हों का सफ़र पेज - 35)

वह अमरूद का पेड़

***

घर के सामने अमरूद का पेड़

आज भी वहीं पर स्थित है

बिछुड़े हुए अपनों की आस लगाए

घर को सूनी आँखों से निहारता

वक़्त के कुठाराघात से छलनी

नितान्त निःशब्द गाँव का मूक साक्षी

विषमताओं में ख़ुद को सहेजता

बीते लम्हों की याद में अकेला जीता। 


उस पेड़ की घनी मज़बूत डालियों पर चढ़कर

कच्चे अमरूद खाती थी एक नन्ही-सी लड़की

ढूँढ रही हूँ कब से उसे, न जाने कहाँ है अब वह लड़की

पूछती हूँ उस वृद्ध पेड़ से 

उसका पता या उसकी कोई निशानी

जो संजोकर रखा हो उसने। 


आज पेड़ भी असमर्थ है

उस लड़की की पहचान बताने में

नियति के खेल का दर्शक यह पेड़

झिझकता है शायद बताने में कि वह कौन थी

या सभी अपनों की तरह वह भी भूल गया है उसे।


वह लड़की खो गई है कहीं

बचपन भी गुम हो गया था कभी

उम्र से बहुत पहले 

वक़्त ने उसे बड़ा बना दिया था कभी

कहीं कोई निशानी नहीं उसकी

अब कहाँ ढूँढूँ उस नन्ही लड़की को?


सामने खड़ी है आज वह लड़की

कोई पहचानता नहीं उसे

वक़्त के साथ बदलती रफ़्तार ने

सदा के लिए खो दिया है उसका वजूद

सभी का इनकार तो सहज है

पर उस पेड़ ने भी न पहचाना

जिसकी डालियों पर चढ़कर वह नन्ही-सी लड़की

खाती थी कच्चे अमरूद।


वह प्यारा अमरूद का पेड़, आज भी राह जोहता है

उस नन्ही लड़की को खोजता है

जिसका सब खो चुका है

नाम, पहचान, निशान सब मिट चुका है।


उस पेड़ को कैसे याद दिलाए कि 

वह लड़की गुम है ज़माने में

पर विस्मृत नहीं कर सकी

अब तक उस अमरूद के पेड़ को

वह नन्ही लड़की वही है 

जो उसकी डालियों पर चढ़कर

खाती थी कच्चे अमरूद।


-जेन्नी शबनम (14.11.2009)
(बाल दिवस)
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Wah Amruud ka Ped

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ghar ke saamne Amruud ka ped
aaj bhi wahin par sthit hai
bichhude hue apnon ki aas lagaaye
ghar ko sooni aankhon se nihaarta
waqt ke kuthaaraaghaat se chhalni
nitaant nihshabd gaanv ka mook saakshi 
vishamtaaon mein khud ko sahejta
beete lamhon kee yaad mein akela jeeta.

us ped ki ghani mazboot daaliyon par chadhkar
kachche amruud khaati thee ek nanhi-see ladki,
dhundh rahee hoon kab se usey, na jaane kahan hai ab wah ladki
puchhti hoon us vriddh ped se
uska pata ya uski koi nishaani
jo sanjokar rakha ho usne.

aaj ped bhi asamarth hai
us ladki ki pahchaan bataane mein
niyati ke khel ka darshak yah ped
jhijhakta hai shayad bataane mein ki wah kaun thee
ya sabhi apno ki tarah wah bhi bhool gaya hai usey.

wah ladki kho gai hai kahin
bachpan bhi gum ho gayaa thaa kabhi
umra se bahut pahle 
waqt ne usey bada bana diya tha kabhi
kahin koi nishaani nahin uski
ab kahan dhoondhoon us nanhi ladki ko?

saamne khadi hai aaj wah ladki
koi pahchaanta nahin usey
waqt ke saath badalti raftaar ne
sadaa ke liye kho diya hai uska wajood
sabhi ka inkaar to sahaj hai
par us ped ne bhi na pahchaana
jiski daaliyon par chadhkar wah nanhi-see ladkee
khatee thee kachche amruud.

wah pyara amruud ka ped, aaj bhi raah johta hai
us nanhi ladki ko khojta hai
jiska sab kho chuka hai
naam, pahchaan, nishaan sab mit chuka hai.

us ped ko kaise yaad dilaaye ki
wah ladki gum hai zamaane mein
par vismrit nahin kar saki
ab tak us amruud ke ped ko
wah nanhi ladki wahi hai
jo uski daaliyon par chadhkar
khatee thee kachche amruud.

-Jenny Shabnam (14.11.2009)
(Children's day)
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3 टिप्‍पणियां:

  1. इस अमरुद के पेड़ के बहाने जिस कड़वी हकीकत से रूबरू कराती है आपकी कविता ,वह प्रशंसनीय है..

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  2. मैं भी उन्हीं झुरमुटों में हूँ ....... चलिए दो हो गए.....
    वह जलती गर्मी में अमरुद का पेड़ और कच्चे अमरुद का स्वाद....हम भी नहीं भूले ,
    बहुत कुछ याद दिला गई यह रचना

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  3. बहुत सुन्दर, बहुत प्रभावी...

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