मंगलवार, 7 सितंबर 2010

172. नज़्म को ठुकरा दिए वो / nazm ko thukra diye wo (तुकांत)

नज़्म को ठुकरा दिए वो

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सवाल-ए-वस्ल पर, मुस्कुरा दिए वो
हर बार हमें रुलाके, बिखरा दिए वो

शायरी में नज़्म कहके, सजाया हमें
अब इस नज़्म को ही, ठुकरा दिए वो

जाएँगे कहाँ, मालूम ही कब है हमको
गुज़रे एहसास को भी, बिसरा दिए वो

पूछने की इजाज़त, मिली ही कब हमें
कभी फ़ासला न सिमटे, पहरा दिए वो 

दर्द की बाबत, 'शब' से न पूछना कभी
वस्ल हो कि हिज्र, ज़ख़्म गहरा दिए वो 

- जेन्नी शबनम (7. 9. 2010)
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nazm ko thukra diye wo

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savaal-e-vasl par, muskura diye wo
har baar hamen rulake, bikhra diye wo.

shaayari mein nazm kahke, sajaaya hamen
ab is nazm ko hi, thukra diye wo.

jaayenge kahaan, maaloom hi kab hai hamako
guzre ehsaas ko bhi, bisra diye wo.

puchhne ki ijaazat, mili hi kab hamein
kabhi faasla na simte, pahra diye wo.

dard ki baabat, 'shab' se na puchhna kabhi
wasl ho ki hijra, zakhm gahra diye wo.

- Jenny Shabnam (7. 9. 2010)
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9 टिप्‍पणियां:

  1. जायेंगे कहाँ, मालुम हीं कब है हमको
    गुज़रे एहसास को भी, बिसरा दिए वो !

    बहुत ही अच्छा लिखा है....

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  2. दर्द की बाबत, ''शब'' से न पूछना कभी
    वस्ल हो कि हिज़्र, ज़ख़्म गहरा दिए वो !
    Wah!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया ग़ज़ल !

    सभी शे'र बेहतरीन

    मुबारक !

    जवाब देंहटाएं
  4. पूछने की इजाज़त, मिली हीं कब हमें
    कभी फासला न सिमटे, पहरा दिए वो !
    amazing

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  5. ख़ूबसूरत नज़्म मुबारक बाद॥ 3रे मिसरे में "मलुम" शायद मिसप्रिन्ट है, वास्तव में उसे "मालूम'होना चाहिये।

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  6. शबनम जी बहुत सुन्दर रचना है । कभी समय मिले तो हाइकु भी लिखें और मेल करने का कष्त करें-
    हाइकु पढ़ने और लिखने का अभ्यास हमारी संकीर्ण सोच को विशाल बनाता है । हमें ' मैं ' से ' हम ' बनाता है । अगर आप भी हाइकु लिखना चाहते हैं तो आपका हार्दिक स्वागत है ।हमें नीचे दिए ई - मेल पर भेजें....
    hindihaiku@gmail.com
    OR
    rdkamboj@gmail.com

    सधन्यवाद !
    डॉ हरदीप सन्धु
    रामेश्वर काम्बोज

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  7. pahkaj ji,
    kshama ji,
    khatri ji,
    rashmi ji,
    kamboj ji,
    aap sabhi ka aabhar meri rachna par aane aur pasand karne keliye.

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  8. ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι ने कहा…

    ख़ूबसूरत नज़्म मुबारक बाद॥ 3रे मिसरे में "मलुम" शायद मिसप्रिन्ट है, वास्तव में उसे "मालूम'होना चाहिये।
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    sir,
    main aapka tahedil se shukriya adaa karti hun, meri is truti ko batane keliye. aapne saahi kaha ki ''maaloom'' hoga ''maalum'' nahin. bhool sudhar kar rahi hun. aasha hai yun hin aapka maargdarshan mujhe milta rahega. bahut dhanyawaad.

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  9. पूछने की इजाज़त, मिली हीं कब हमें
    कभी फासला न सिमटे, पहरा दिए वो !
    vah .......

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