रविवार, 23 जनवरी 2011

206. मर्द ने कहा (पुस्तक पेज - 68)

मर्द ने कहा

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मर्द ने कहा -
ऐ औरत!
ख़ामोश होकर मेरी बात सुन
जो कहता हूँ वही कर
मेरे घर में रहना है, तो अपनी औक़ात में रह
मेरे हिसाब से चल, वरना...!

वर्षों से बिखरती रही, औरत हर कोने में
उसके निशाँ पसरे थे, हर कोने में
हर रोज़ पोछती रही, अपनी निशानी
जब से वह, मर्द के घर में थी आई
नहीं चाहती कि कहीं कुछ भी, रह जाए उसका वहाँ
हर जगह उसके निशाँ, पर वो थी ही कहाँ?

वर्षों बीत जाने पर भी
मर्द बार-बार औरत को
उसकी औक़ात बताता है
कहाँ जाए वो?
घर भी अजनबी और वो मर्द भी
नहीं है औरत के लिए, कोई कोना
जहाँ सुकून से, रो भी सके!

- जेन्नी शबनम (22. 1. 2011)
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20 टिप्‍पणियां:

  1. नहीं है औरत लिए
    कोई कोना
    जहाँ सुकून से
    रो भी सके...

    Very touching and describing on of the cruel truth about the society.

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  2. सार्थक और सटीक वेदना नारी की ...अच्छी प्रस्तुति

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  3. नारी की वेदना को बहुत ही सुन्दर और मार्मिक अभिव्यक्ति !

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  4. वर्षों बीत जाने पर भी
    मर्द बार बार औरत को
    उसकी औकात बताता है
    कहाँ जाएँ वो?
    yah prashn wah khud se kare ki wah hai ya nahin ...
    her uttar hamare paas hai, jab tak hum doosron ki pratiksha karte hain nishaan bante, mitte rahte hain

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  5. नहीं है औरत लिए
    कोई कोना
    जहाँ सुकून से
    रो भी सके...

    नारी की व्यथा की बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति..

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  6. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (24/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  7. वर्षों बीत जाने पर भी
    मर्द बार बार औरत को
    उसकी औकात बताता है
    कहाँ जाएँ वो?
    घर भी अजनबी
    और वो मर्द भी...
    नहीं है औरत लिए
    कोई कोना
    जहाँ सुकून से
    रो भी सके...
    आपकी इन पंक्तियों ने हृदय को झकझोर कर रख दिया । औरत कितनी भी योग्य , सच्ची , समर्पित क्यों न हो ; वह तथाकथित मर्द का विश्वास नहीं जीत पाती-यह कड़वी सच्चाई है(हालाँकि इसके अपवाद भी हैं ,लेकिन बहुत कम)

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  8. जेन्नी शबन जी -मर्द ने कहा...कविता पढ़ी;बहुत गहन-चिन्तन से उपजी रचना है । आपने जीवन के यथार्थबोध को जो वाणी दी है, वह भाषा पर आपकी गहरी पकड़ का सबूत है ।
    पुन: बधाई !
    आपका भाई
    काम्बोज

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  9. नहीं है औरत लिए
    कोई कोना
    जहाँ सुकून से
    रो भी सके...
    --
    नारीमन की व्यथा का मार्मिक चित्रण!

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  10. nari man kii vytha ko bilkul sahi tarike se prastut kiya hai apne.....abhar

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  11. चर्चामंच पर कभी कभी आना सार्थक हो जाता है | वही एक कारण है जो इस स्थान पर ले आया | भावनाओं को छू लेती अभिव्यक्ति | लिखते रहें |

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  12. आधुनिकता की अँधड़ में नारी अब भी कहीं अपनी पुरानी व्यथाओं के साथ है। सुंदर प्रस्तुति.

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  13. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 25-01-2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  14. नारी व्यथा का मार्मिक चित्रण। किंतु यह भी नही भूलना चाहिये कि वह "शक्ति" का प्रतीक है। "माता" के रूप मे पूजनीय है। बस फ़र्क़ इतना है कि कोई स्त्री को केवल "भोग्या" के रूप मे देखता है तो कोई इसे "माँ" के रूप मे।

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  15. वर्षों से बिखरती रही
    औरत हर कोने में,
    उसके निशाँ पसरे थे
    हर कोने में,
    हर रोज़ पोंछती रही
    अपनी निशानी...

    aaj bhi yehi sach hai hazaaron auraton ke liye... behtreen kavita!

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  16. बहुत सही लिखा है आपने...हर एक औरत का दर्द बयाँ कर डाला । कहे ना कहे, पर औरत की असली स्थिति यही है...।
    मेरी बधाई...।

    प्रियंका गुप्ता

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