मंगलवार, 10 मई 2011

242. तनहा-तनहा हम रह जाएँगे (तुकान्त)

तनहा-तनहा हम रह जाएँगे

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सब छोड़ जाएँगे जब हमको
तनहा-तनहा हम रह जाएँगे
किसे बताएँगे ग़म औ खुशियाँ
सदमा कैसे हम सह पाएँगे।  

किसकी तक़दीर में क्यों हुए वो शामिल
कभी नहीं हम कह पाएँगे
अपनी हाथ की फिसलती लकीरों में
उनको सँभाल हम कब पाएँगे। 

हर तरफ़ फैला सन्नाटा
यूँ ही पुकारते हम रह जाएँगे 
है अजब पहेली ज़िन्दगी
उलझन सुलझा कैसे हम पाएँगे। 

हर रोज़ तकरार करते हैं
और कहते कि वो चले जाएँगे
अपनी शिकायत किससे करें
ग़ैरों से नहीं हम कह पाएँगे। 

जाने कैसे कोई रहता तनहा
मगर नहीं हम रह पाएँगे
ज़िन्दगी की बाबत बोली 'शब'
तन्हाई नहीं हम सह पाएँगे। 

- जेन्नी शबनम (8. 5. 2011)
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12 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामीमई 10, 2011 11:02 pm

    बहुत सुंदर पोस्ट बधाई |

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  2. behatarin abhivyakti ,-

    सब छोड़ जायेंगे जब हमको
    तन्हा तन्हा हम रह जायेंगे,
    bhav purn rachana . abhar ji .

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  3. है अज़ब पहेली ज़िन्दगी
    उलझन सुलझा कैसे हम पायेंगे,
    हर तरफ फैला सन्नाटा
    यूँ हीं पुकारते हम रह जायेंगे!
    kitni gahree baat kahi hai, shubhkamnayen

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  4. जाने कैसे कोई रहता तन्हा
    मगर नहीं हम रह पायेंगे,
    ज़िन्दगी की बाबत बोली ''शब''
    तन्हाई नहीं हम सह पायेंगे|
    --
    बहुत उम्दा गजल!

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  5. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  6. जीवन को धीरे-धीरे कुतरने वाला अहसास है -तन्हाई । इसका आपने बहुत ही मार्मिक और व्यथा को स्वरूप देने वाला चित्रण किया है । बरबस सहृदय पाठक को बहुत कुछ सोचने पर मज़बूर कर देता है । इन पंक्तियों की गहराई और व्याकुलता तो मन को बहुत मथ देती है- जाने कैसे कोई रहता तन्हा
    मगर नहीं हम रह पायेंगे,

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  7. बेनामीमई 12, 2011 10:11 am

    सब्नम जी क्या कहने आपके , सुन्दर प्रश्तुती

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  8. अकेलेपन के एहसास को कहती अच्छी रचना

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