शनिवार, 11 जून 2011

252. हो ही नहीं (क्षणिका)

हो ही नहीं

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कौन जाने सफ़र कब शुरू हो
या कि हो ही नहीं
रास्ते तो कहीं जाते नहीं
चलना मेरे नसीब में हो ही नहीं। 

- जेन्नी शबनम (1. 2. 2011)
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9 टिप्‍पणियां:

  1. waah waah !!
    Rally beautiful.... this shows the uncertainties in life.

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  2. कौन जाने सफ़र कब शुरू हो
    या कि हो हीं नहीं,
    रास्ते तो कहीं जाते नहीं
    चलना मेरे नसीब में हो हीं नहीं ! जेन्नी जी आपकी इस कविता को पढ़कर मैं इतना ही कह सकता हूँ - तलाशेगी सफ़र में किसी दिन मंजिल तुमको हर पड़ाव इन कदमों के बहुत करीब होगा । तुम बहते हुए दरिया की हो धारा निर्मल जो ना समझे कि क्या हो उसका नसीब होगा ।

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  3. SUNDAR AUR SAHAJ BHAVABHIVYAKTI.

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  4. CHAR LINE OR JINDGI KI BAAT. . .
    LAJWAAC SHER
    JAI HIND JAI BHARAT

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