शनिवार, 25 जून 2011

257. बस धड़कनें चलेंगी

बस धड़कनें चलेंगी

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भला ऐसा भी होता है
न जीते बनता है
न कोई रास्ता मिलता है,
साथ चलते तो हैं लेकिन
कुछ दूरी 
बनाए रहना होता है,
मन में 
बहुत कुछ अनबोला रहता है
बहुत कुछ अनजीया रहता है,
मन तो चाहता है
सब कह दें
जो जी चाहता सब कर लें,
कई शर्तें भी साथ होती हैं
जिन्हें मानना अपरिहार्य है
ऐसा भी हो सकता है
न मानो तो अनर्थ हो जाए,
संसार के दाँव-पेंच
मन बहुत घबराता है
बेहतर है
अपने कुआँ के मेढ़क रहो
या अपने चारों तरफ़
काँटों के बाड़ लगा लो,
न कोई आएगा
न कोई भाव उपजेंगे
न मन में कोई कामना जागेगी,
मृत्यु की प्रतीक्षा में
बस धड़कनें चलेंगी। 

- जेन्नी शबनम (जून 20, 2011)
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6 टिप्‍पणियां:

  1. संसार के दांव पेंच
    मन बहुत घबराता है,
    wakayee.ajkal to bas yahi haal hai.

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  2. अरे ऐसा क्यो कह रही है आप?

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  3. मन की यह दुविधा ही जीवन के लिए व्यथा का कारण बन जाती है । आपने इन पंक्तियों में इसतथ्य को बहुत सूक्ष्मता से चित्रित किया है भला ऐसा भी होता है
    न जीते बनता
    न कोई रास्ता मिलता है,
    साथ चलते तो हैं
    लेकिन
    कुछ दूरी बनाए रहना होता है,
    मन में बहुत कुछ
    अनबोला रहता है
    बहुत कुछ अनजिया रहता है,
    मन तो चाहता है
    सब कह दें
    जो जी चाहता
    सब कर लें, भावपूर्ण कविता के लिए बहुत बधाई!

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  4. बहुत बढ़िया रचना!
    शब्दचित्र बहुत खूबसूरत हैं!

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