सोमवार, 1 अगस्त 2011

267. कुछ तो था मेरा अपना

कुछ तो था मेरा अपना

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जी चाहता है
सब कुछ छोड़कर
लौट जाऊँ, अपने उसी अँधेरे कोने में
जहाँ कभी किसी दिन
दुबकी हुई, मैं मिली थी तुम्हें
और तुम खींच लाए थे उजाले में
चहकने के लिए
। 

खिली-खिली मैं
जाने कैसे सब भूल गई
वो सब यादें विस्मृत कर दी
जो टीस देती थी मुझे
और मैं तुम्हारे साथ
सतरंगी सपने देखने लगी थी
जानते हुए कि
बीते हुए कल के अँधेरे साथ नहीं छोड़ेंगे
और एक दिन तुम भी छोड़ जाओगे
मैंने एक भ्रम लपेट लिया था कि
सब कुछ अच्छा है
जो बीता वो कल था
आज का सपना सब सच्चा है

अब तो जो शेष है
बस मेरे साथ
मेरा ही अवशेष है
जी चाहता है
लौट जाऊँ अपने उसी अँधेरे कोने में
अपने सच के साथ
जहाँ कुछ तो था
मेरा अपना...!

- जेन्नी शबनम (1. 8. 2011)
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11 टिप्‍पणियां:

  1. सतरंगी सपने देखने लगी थी|
    जानते हुए कि
    बीते हुए कल के अँधेरे साथ नहीं छोड़ेंगे
    और एक दिन तुम भी छोड़ जाओगे,

    BAHUT HI BHAVPURAN RACHNA LIKHI HAI MAM APNE............

    JAI HIND JAI BHARAT

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  2. अब तो जो शेष है
    बस मेरे साथ
    मेरा हीं अवशेष है,
    जी चाहता है
    वापस लौट जाऊं
    अपने उसी अँधेरे कोने में
    अपने सच के साथ,
    जहाँ कुछ तो था
    मेरा अपना...
    Ye aisa sabhee ke saath shayad hota hoga! Sabhee sssamvedansheel wyaktion ke saath...

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  3. आज का सपना
    सब सच्चा है|
    अब तो जो शेष है
    बस मेरे साथ
    मेरा हीं अवशेष है,
    जी चाहता है
    वापस लौट जाऊं
    अपने उसी अँधेरे कोने में
    अपने सच के साथ,
    जहाँ कुछ तो था
    मेरा अपना...
    bahut bhavpurn abhivyakti
    rachana

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  4. जी चाहता है
    वापस लौट जाऊं
    अपने उसी अँधेरे कोने में
    अपने सच के साथ,
    जहाँ कुछ तो था
    मेरा अपना...
    yahi dil kerta hai...

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  5. bahut gahan bhaavon ko ispasht karti post achchi kavita kuch to tha mera apna achchi abhivyakti.

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  6. जी चाहता है
    वापस लौट जाऊं
    अपने उसी अँधेरे कोने में
    अपने सच के साथ,
    जहाँ कुछ तो था
    मेरा अपना...


    बहुत सुन्दर भाव ..हार्दिक बधाई ....

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  7. और तुम खिंच लाये थे उजाले में
    चहकने केलिए|
    खिली खिली मैं
    जाने कैसे सब भूल गई
    वो सब यादें विस्मृत कर दी
    जो टीस देती थी मुझे,
    और मैं
    तुम्हारे साथ
    सतरंगी सपने देखने लगी थी|
    जानते हुए कि
    बीते हुए कल के अँधेरे साथ नहीं छोड़ेंगे
    और एक दिन तुम भी छोड़ जाओगे, जेन्नी जी आपकी ये पंक्तियाँ जीवन के खुरदुरे यथार्थ को ज़ुबान देती है। आपने सच ही कहा है कि "बीते हुए कल के अँधेरे साथ नहीं छोड़ेंगे"- जीवन है कि फिर भी जीना ही पड़ता है । कई दिनों के बाद आपकी रचना पढ़ने का वसर मिला, हार्दिक बधाई !

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  8. जी चाहता है
    वापस लौट जाऊं
    अपने उसी अँधेरे कोने में
    अपने सच के साथ,
    जहाँ कुछ तो था
    मेरा अपना...

    बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  9. बहुत भावप्रण्व रचना!
    --
    चौमासे में श्याम घटा जब आसमान पर छाती है।
    आजादी के उत्सव की वो मुझको याद दिलाती है।।....

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  10. मैंने एक भ्रम लपेट लिया था कि
    सब कुछ अच्छा है..........
    स्त्री अधिकतर इन्हीं भ्रम में ही उलझ के अपना जीवन होम कर देती है...
    अच्छी रचना !!

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