सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

290. तब हुआ अबेर (क्षणिका)

तब हुआ अबेर

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जब मिला बेर, तब हुआ अबेर
मचा कोलाहल, चित्र दिया उकेर
छटपटाया मन, शब्द दिया बिखेर
बिछा सन्नाटा, अब जगा अँधेर
'शब' सो गई, तब हुआ सबेर। 

- जेन्नी शबनम (1. 10. 2011)
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8 टिप्‍पणियां:

  1. छटपटाया मन शब्द दिया बिखेर... मन का कहने और मन का पढने में माहिर हैं आप! बधाई एक सुंदर रचना के लिए...!

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  2. भावपूर्ण रचना ,
    बहुत सार्थक प्रस्तुति , बधाई

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  3. छटपटाया मन शब्द दिये बिखेर वाह यही तो होता है हम ब्लोग्गेर्स के साथ :) है ना !!!
    समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    बधाई स्वीकार करें ||

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  5. आदरणीय जेन्नी शबनम जी,

    आपकी 'शब' को सादर नमन.

    नमन से जब 'न' को हटाया और

    शब के साथ लगाया,फिर तो

    'शबनम' को ही पाया.

    वाह! क्या बात है.यह तो तुकबंदी हो गई.

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