बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

293. ज़िन्दगी (तुकांत)

ज़िन्दगी

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ज़िन्दगी तेरी सोहबत में, जीने को मन करता है 
चलते हैं कहीं दूर कि, दुनिया से डर लगता है। 

हर शाम जब अँधेरे, छीनते हैं मेरा सुकून
तेरे साथ ऐ ज़िन्दगी, मर जाने को जी करता है। 

अब के जो मिलना, संग कुछ दूर चलना
ढलती उमर में, तन्हाई से डर लगता है। 

आस टूटी नहीं, तुझसे शिकवा भी है
ग़र तू साथ नहीं, फिर भ्रम क्यों देता है। 

'शब' कहती थी कल, ऐ ज़िन्दगी तुझसे
छोड़ते नहीं हाथ, जब कोई पकड़ता है। 

ऐ ज़िन्दगी, अब यहीं ठहर जा
तुझ संग जीने को, मन करता है। 

- जेन्नी शबनम (16. 10. 2011)
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17 टिप्‍पणियां:

  1. रचना चर्चा-मंच पर, शोभित सब उत्कृष्ट |
    संग में परिचय-श्रृंखला, करती हैं आकृष्ट |

    शुक्रवारीय चर्चा मंच
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. शब' कहती थी कल
    ऐ ज़िन्दगी तुझसे
    छोड़ते नहीं हाथ
    जब कोई पकड़ता है !
    ऐ ज़िन्दगी
    अब यहीं ठहर जा
    तुझ संग जीने को
    मन करता है !
    ....
    ना रोको ज़िन्दगी को यूँ अपने पास
    ठहरी ज़िन्दगी मौत से भी बदतर होती है...

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  3. shukriya Sushma ji, Ravikar ji.

    Rashmi ji,
    sahi kaha ruki hui zindagi maot se bhi badtar hai. par zindagi mile to hin na ruke. kuchh pal ko milti kho jaati, agar zindagi ke saath maut bhi mile to manzoor hai. shukriya saarthak pratikriya ke liye.

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  4. बहुत गहन अनुभूति लिए सुन्दर प्रस्तुति..दीपावली की शुभकामनाएं....

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  5. वाह...आपकी यह रचना पढ़कर एक पूरना हिन्दी फिल्मी गीत याद आया "ज़िंदगी कैसी है पहली हाय कभी यह हसाये कभी यह रुलाये"

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
    सुना है बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
    तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!

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  7. बहुत ही खूबसूरत कविता डॉ० जेन्नी शबनम जी बहुत -बहुत बधाई और शुभकामनायें

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  8. बहुत ही खूबसूरत कविता डॉ० जेन्नी शबनम जी बहुत -बहुत बधाई और शुभकामनायें

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  9. ऐ ज़िन्दगी
    अब यहीं ठहर जा
    तुझ संग जीने को
    मन करता है !

    बहुत ही भावुक कर देने वीली प्रस्तुति ।।आपता प्रेम सरोवर पर इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  10. ऐ ज़िन्दगी
    अब यहीं ठहर जा
    तुझ संग जीने को
    मन करता है !
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति अभावों को कुरेदती सी .दिवाली मुबारक आपको .

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  11. तुझसे शिकवा भी है
    ग़र तू साथ नहीं
    फिर भ्रम क्यों देता है?
    jindagi ki kashmakash...
    pahli baar aapke blog par aana hua.aakar bahut khushi hui

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  12. क्या बात है ... कमाल की लाइनें हैं ... मन में उतर जाती हैं ..

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  13. 'शब' कहती थी कल
    ऐ ज़िन्दगी तुझसे
    छोड़ते नहीं हाथ
    जब कोई पकड़ता है !
    ऐ ज़िन्दगी
    अब यहीं ठहर जा
    तुझ संग जीने को
    मन करता है !
    बेहतरीन....!!

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  14. "खुदा की नेमतें हैं ये इबादत की तरह ले लो...
    न रोको तुम इसे, ये जिन्दगी भरपूर जी लो तुम !
    गयी गर जिन्दगी तो फिर पलट कर ये न आयेगी!!
    अभी जी लो,यहीं जी लो,इसे बाँहों में ले लो तुम!"

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  15. जेन्नी शबनम जी आपकी ये पंक्तियाँ तो हर दिल के बहुत नज़दीक की बात कहती हैं
    हर शाम जब अँधेरे
    छीनते हैं मेरा सुकून
    तेरे साथ ऐ ज़िन्दगी
    मर जाने को जी करता है !
    अब के जो मिलना
    संग कुछ दूर चलना
    ढलती उमर में
    तन्हाई से डर लगता है !

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