शनिवार, 17 दिसंबर 2011

306. अब डूबने को है

अब डूबने को है

*******

बहाने नहीं हैं पलायन के
न ही कोई अफ़साने हैं मेरे
न कोई ऐसा सच
जिससे तुम भागते हो
और सोचते हो कि मुझे तोड़ देगा,
सारे सच जो अग्नि से प्रज्वलित होकर निखरे हैं
तुम जानते हो दोस्त
वो मैंने ही जलाए थे,
पल-पल की बातें जब भारी पड़ गई
एक दोने में लपेटकर नदी में बहा दिया 
फिर वो दोना एक मछुआरे ने मुझ तक पहुँचा दिया
क्योंकि उसपर मैंने अपने नाम लिख दिए थे
ताकि जब जल में समाए तो
अपने साथ मुझे भी समाहित कर ले,
अब उस दोने को जला रही हूँ
सारे सच पक-पककर
गाढे रंग के हो गए हैं,
वो देखो मेरे दोस्त
सूरज-सा तपता मेरा सच
अब डूबने को है। 

- जेन्नी शबनम (17. 11. 2011)
______________________

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मार्मिक बात कह दी गई इन पंक्तियों में
    -तुम जानते हो दोस्त
    वो मैंने हीं जलाए थे,
    पल पल की बातें जब भारी पड़ गई
    एक दोने में लपेट कर नदी में बहा दी -
    जेन्नी जी की एक विशेषता है -मन की पर्तों को भेदकर भीतरी उथल-पुथल को बाहर लाना । इस कठिन काम को आप बहुत सहजता से निभा लेती हैं। हार्दिक बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  2. सारे सच पक-पक कर
    गाढे रंग के हो गए हैं,
    वो देखो मेरे दोस्त
    सूरज सा तपता मेरा सच...
    अब डूबने को है !

    खूबसूरत भाव.

    जवाब देंहटाएं
  3. जब भी आपके पोस्ट पर आया हूँ, हर समय कुछ न कुछ सीखने वाला चीज मिला है। यह पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपकी प्रतिक्रियायों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. जब भी आपके पोस्ट पर आया हूँ, हर समय कुछ न कुछ सीखने वाला चीज मिला है। यह पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपकी प्रतिक्रियायों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. वो देखो मेरे दोस्त
    सूरज सा तपता मेरा सच...
    अब डूबने को है !
    बहुत बढि़या।

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन प्रस्तुति सुंदर पन्तियाँ अच्छी रचना,....

    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

    आफिस में क्लर्क का, व्यापार में संपर्क का.
    जीवन में वर्क का, रेखाओं में कर्क का,
    कवि में बिहारी का, कथा में तिवारी का,
    सभा में दरवारी का,भोजन में तरकारी का.
    महत्व है,...

    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

    जवाब देंहटाएं
  7. पल पल की बातें जब भारी पड़ गई एक दोने में लपेट कर नदी में बहा दी

    वाह! क्या सोच और प्रस्तुति है आपकी.
    आपके लम्हों का सफर अदभुत है ,जेन्नी जी.
    मार्मिक और हृदयस्पर्शी.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार आपका.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

    जवाब देंहटाएं