सोमवार, 9 जनवरी 2012

313. जाने कैसे

जाने कैसे

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किसी अस्पृश्य के साथ
खाये एक निवाले से
कई जन्मों के लिए
कोई कैसे
पाप का भागीदार बन जाता है
जो गंगा में एक डुबकी से धुल जाता है
या फिर गंगा के बालू से मुख शुद्धि कर
हर जन्म को पवित्र कर लेता है।  
अतार्किक
परन्तु सच का सामना कैसे करें?
हमारा सच हमारी कुंठा
हमारी हारी हुई चेतना
एक लकीर खींच लेती है
फिर हमारे डगमगाते क़दम
इन राहों में उलझ जाते हैं और
मन में बसा हुआ दरिया
आसमान का बादल बन जाता है।  

- जेन्नी शबनम (9. 1. 2012)
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24 टिप्‍पणियां:

  1. फिर
    हमारे डगमगाते
    कदम
    इन राहों में उलझ जाते हैं
    और
    मन में बसा हुआ दरिया
    आसमान का बादल बन जाता है
    Bahut,bahut khoobsoorat!

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  2. वाह .... दरअसल पाप और पुण्य खुद मानव के बानए हुए ही है। क्या पाप है। क्या पुण्य यह वास्तव मे कोई खुद नहीं जानता बस कुछ नियम के जैसे हैं यह पाप और पुण्य जो बस चलते चले आरहे हैं सदियों से और जिनकी एक परिभाषा सी मान ली गई है की ऐसा हुआ तो यह पाप है और वैसा हुआ तो यह पुण्य जब की इसका कोई आधार नहीं है। उसी तरह पाप से मुक्ति के भी अपनी-अपनी मान्यताए बना राखी हैं लोगों ने की गंगा में एक डुबकी सारे पापों का खात्मा...विचारनिए एवं सशक्त अभिव्यक्ति ...आपको क्या लगता है ? :)क्या मैं सही हूँ ?

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  3. आपकी कविता के लिए मेर पास कभी भी कोई विशेषण मुझे समीचीन नही लगता । आपके अंतर्मन से निकले भाव किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के मन को आंदोलित करने की क्षमता रखते हैं । आपकी कविता दिल के तारों को झंकृत कर गयी । मेरे नए पोस्ट "मुझे लेखनी ने थामा इसलिए मैं लेखनी को थाम सकी" (मन्नू भंडारी) पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

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  4. Man me basaa dariya aur doob kar jaana hota hai.. aasmaan ka badal ban gaya...bahut sundar bimb aur bhavovyakti

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  5. अतार्किक
    परन्तु
    सच का सामना कैसे करें?... सच का सामना नहीं करना तभी तो पलायन के ये सुरक्षित मार्ग हैं !

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  6. बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ||

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  7. जो गंगा में एक डुबकी से धुल जाता है...
    लाजबाब रचना
    नववर्ष की मंगल कामनाएं .

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  8. इसी सह का सामना तो ,मुश्किल है,बहुत.

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  9. वाह बहुत बढ़िया!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  10. बहुत खूबसूरत पंक्तियां...

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  11. हमारे डगमगाते
    कदम
    इन राहों में उलझ जाते हैं
    और
    मन में बसा हुआ दरिया
    आसमान का बादल बन जाता है !

    सही कहा आपने ,सार्थक प्रस्तुति

    vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....

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  12. बेहतरीन प्रस्तुति ।
    मेरी नई कविता देखें । और ब्लॉग अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें ।
    मेरी कविता:मुस्कुराहट तेरी

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  13. शबनम जी,..समर्थक (फालोवर)बन रहा हूँ आप भी बने तो मुझे हार्दिक खुशी होगी,...
    welcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--

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  14. ऐसे पाप तो गंगा मैया भी नहीं धोती ... जहां इंसानों से नफरत हो ...
    आस्था भी निर्मल मन का ही साथ देती है ...

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  15. कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

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  16. सच का सामना कैसे करें?
    हमारा सच
    हमारी कुंठा
    हमारी हारी हुई चेतना
    एक लकीर खींच लेती है

    सच कहा आपने.
    आपकी प्रस्तुति सुन्दर.प्रेरक
    और सकारात्मक चिंतन की प्रेरणा देती है.

    आभार,जेन्नी जी.

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  17. यही आस तो जीवन है -सुन्दर अभिव्यक्ति!

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