रविवार, 25 मार्च 2012

334. परवाह (क्षणिका)

परवाह

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कई बार प्रेम के रिश्ते फाँस-से चुभते हैं
इसलिए नहीं कि रिश्ते ने दर्द दिया
इसलिए कि रिश्ते ने परवाह नहीं की
और प्रेम की आधारशिला परवाह होती है। 

- जेन्नी शबनम (22. 3. 2012)
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18 टिप्‍पणियां:

  1. एकदम सच.....
    जो परवाह नहीं करते
    वे रिश्ते प्रेम के होते ही नहीं...

    सुन्दर भाव जेन्नी जी.

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  2. कल 26/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. प्रेम होता नहीं , वहम बनकर वक़्त बिताता है , फिर चुभता है

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  4. सच है प्रेम का मतलब ही है की दूजे की परवाह करना ... बहुत खूब ...

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  5. सही बात है। प्रेम की नींव ही परवाह है।

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  6. सही कहा आपने...
    उम्दा प्रस्तुति...

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  7. जिस प्रेम में परवाह नहीं वो सिर्फ दिखावा है..गहन अभिव्यक्ति...

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  8. बिलकुल सच कहा आपने बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना...

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  9. "जेन्नी शबनम जी बहुत भावपूर्ण कविता है ।परवाह में आपने सब कुछ समेट दिया है-सचमुच प्रेम एक दूसरे की परवाह करना ही है , भावना की क़्द्र करना ही प्रेम है ।

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  10. ...प्रेम की आधारशिला परवाह होती है !
    वाह!

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