सोमवार, 27 अगस्त 2012

370. मालिक की किरपा (पुस्तक - 88)

मालिक की किरपा

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धुआँ-धुआँ, ऊँची चिमनी 
गीली मिट्टी, साँचा, लथपथ बदन  
कच्ची ईंट, पक्की ईंट, और ईंट के साथ पकता भविष्य, 
ईंटों का ढेर
एक-दो-तीन-चार 
सिर पर एक ईंट, फिर दो, फिर दो की ऊँची पंक्ति 
खाँसते-खाँसते, जैसे साँस अटकती है  
ढनमनाता-घिसटता, पर बड़े एहतियात से   
ईंटों को सँभालकर उतारता 
एक भी टूटी, तो कमर टूट जाएगी,
रोज़ तो गोड़ लगता है ब्रह्म स्थान का  
बस साल भर और 
इसी साल तो, बचवा मैट्रिक का इम्तहान देगा
चौड़ा-चकईठ है, सबको पछाड़ देगा 
मालिक पर भरोसा है, बहुत पहुँच है उनकी 
मालिक कहते हैं-   
गाँठ में दम हो तो सब हो जाएगा,
एक-एक ईंट, जैसे एक-एक पाई 
एक-एक पाई, जैसे बचवा का भविष्य
जानता है, न उसकी मेहरारू ठीक होगी, न वो 
एक भी ढेऊआ डाक्टर को देके, काहे बर्बाद करे कमाई
ये भी मालूम है
साल दू साल और बस...
हरिद्वार वाले बाबा का दिया जड़ी-बूटी है न 
अगर नसीब होगा, बचवा का, सरकारी नौकरी का सुख देखेगा,
अपना तो फ़र्ज़ पूरा किया 
बाक़ी मालिक की किरपा...!
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ढनमनाता - डगमगाता 
गोड़ - पैर 
ढेऊआ - धेला / पैसा 
किरपा - कृपा
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- जेन्नी शबनम (1. 5. 2009)
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18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....

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  2. वो मजूरी नहीं ता -उम्र बोता है ढ़ोता है एक खाब ....बढ़िया भाव चित्र मनोभावों का सजीव खाका ,मूर्त ताना बाना खडा करती है यह रचना .कृपया यहाँ भी पधारें -

    सोमवार, 27 अगस्त 2012
    अतिशय रीढ़ वक्रता (Scoliosis) का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली में
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  3. 'अपना तो फर्ज पूरा किया ,बाकी मालिक की किरपा ' बहुत सुंदर ,बहुत संवेदनशील रचना ।मैम अब तक जितने भी ब्लॉग की रचनाये पढ़ीं उन सबमें आपकी रचना अलग ही होती है ।

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  4. सुन्दर चित्रांकन! और folksy शब्दों से चार चाँद लगे हुए हैं...
    सादर

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  5. हर माँ का यही स्वप्न होता है ...स्नेह की छाँव तले जब परवरिश जवान होती है और नंगी जमी पर जब चलना होता है..तब यही ये अंकुरित बीज डगमगाते हुए अपने पैर रखते है ..कुछ सफल हो जाते है और कुछ गिर कर गर्त में खो जाते है .....बहुत ही खुबसूरत कविता ..

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  6. बहतरीन रचना..सुन्दर भाव

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  7. मालिक की किरपा के ही आसरे है ये दुनिया...

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  8. आज के समय का....कठोर पर आज का कटु सत्य

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  9. Samajh me nahee ata ki aisa wishwas insaan ko sukhee kar deta hai ya dukhee...

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  10. बाकी मालिक की किस्पा ... और अरीब बिचारा इसी आस में जीता रहता है ... ठोकरें खाता रहता है ... कहने को देश का भविष्य है ...

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  11. bas malik ki kripa... sab hoga achchha hi hoga...!!

    dil ko chhune wali rachna di..:)

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  12. har mehnatkash poori jeendagi int dar int sambhaal kar rakhtaa huaa bhavishay ko sanwaartaa hai,phir maalik kii kripaa kii aas liye jeeta hai.aapne apni kavitaa men inhen sarthak shabdon se nawaaja hai,sundar.

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  13. अपना तो फ़र्ज़ पूरा किया
    बाकी मालिक की किरपा... !behad achchi lagi......

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  14. करुणा को आपने सुंदर शब्दों से सजाया है।

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  15. करुणा को आपने सुंदर शब्दों से सजाया है।

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