गुरुवार, 21 मार्च 2013

393. यह कविता है (क्षणिका)

यह कविता है

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मन की अनुभूति   
ज़रा-ज़रा जमती, ज़रा-ज़रा उगती
ज़रा-ज़रा सिमटती, ज़रा-ज़रा बिखरती  
मन की परछाई बन एक रूप है धरती
मन के व्याकरण से मन की स्लेट पर 
मन की खल्ली से जोड़-जोड़कर कुछ हर्फ़ है गढ़ती
नहीं मालूम इस अभिव्यक्ति की भाषा 
नहीं मालूम इसकी परिभाषा
सुना है, यह कविता है। 

- जेन्नी शबनम (21. 3. 2013)
(विश्व कविता दिवस पर)
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19 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई ..कुछ ऐसी ही होती है कविता ..कुछ कुछ अनबूझी सी ...

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  2. दिल से निकला हर एक लफ्ज़ कविता ही तो है...

    बहुत सुन्दर!!

    सादर
    अनु

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  3. मन के अनुभूति को भावों के साथ कागजो पर उकेरना ही कविता है,,,,
    RecentPOST: रंगों के दोहे ,

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  4. नहीं मालूम
    इस अभिव्यक्ति की भाषा
    नहीं मालूम
    इसकी परिभाषा;
    सुना है
    यह कविता है !-----waah bahut sarthak rachna badhai

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  5. वाह! सुन्दर परिभाषा है कविता की.
    नीरज 'नीर'

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  6. कविता की सही परिभाषा और स्वरूप यही है, जो चुपचाप इसी तरह शब्दों का आकार और फिर अर्थ का विस्तार ग्रहण कर लेता है ।

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  7. कविता दिवस को बखूबी शब्दों में पिरोया आपने ....

    शुभकामनाएं .....!!

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  8. निस्संदेह - वही कविता है

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  9. निस्संदेह - वही कविता है

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  10. SAHAJ BHAVABHIVYAKTI NE MAN KO CHHOO LIYA HAI . YUN HEE LIKHTEE
    RAHEN AUR MAN LUBHAATE RAHEN .

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  11. SAHAJ BHAVABHIVYAKTI MAN KO CHHOOTEE HAI . YUN HEE LIKHTEE RAHEN AUR LUBHAATEE RAHEN .

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  12. मन की खल्ली से
    जोड़-जोड़ कर
    कुछ हर्फ़ है गढ़ती,
    नहीं मालूम
    इस अभिव्यक्ति की भाषा

    badhai sabnam ji bahut sundar rachana lagi ....

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  13. मन की अनुभूति ह्रदय के धरातल पर जमती उगती और पल्लवित होती है बस बन जाती है आपकी कविता .....

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  14. वाह! यही तो कविता है...बहुत सुन्दर

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  15. नहीं मालूम
    इस अभिव्यक्ति की भाषा
    नहीं मालूम
    इसकी परिभाषा;
    सुना है
    यह कविता है ! waah

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