शुक्रवार, 7 जून 2013

408. खूँटे से बँधी गाय

खूँटे से बँधी गाय

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खूँटे से बँधी गाय 
जुगाली करती-करती 
जाने क्या-क्या सोचती है  
अपनी ताक़त 
अपनी क्षमता 
अपनी बेबसी 
और गौ पूजन की परम्परा  
जिसके कारण वह ज़िंदा है  
या फिर इस कारण भी कि
वैसी ज़रूरतें 
जिन्हें सिर्फ़ वो ही पूरी कर सकती है  
शायद उसका कोई विकल्प नहीं 
इस लिए ज़िंदा रखी गई है  
जब चाहा 
दूसरे खूँटे से उसे बाँध दिया गया 
ताकि ज़रूरतें पूरी करे  
कौन जाने, ख़ुदा की मंशा 
कौन जाने, तक़दीर का लिखा 
उसके गले का पगहा 
उसके हर वक़्त को बाँध देता है 
ताकि वो आज़ाद न रहे कभी 
और उसकी ज़िन्दगी 
पल-पल शुक्रगुज़ार हो उनका 
जिन्होंने एक खूँटा दिया 
और खूँटा गड़े रहने की जगह 
ताकि खूँटे के उस दायरे में 
उसकी ज़िन्दगी सुरक्षित रहे  
और वक़्त की इंसाफी  
उसके खूँटे की ज़मीन आबाद रहे।  

- जेन्नी शबनम (7. 6. 2013)
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14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (07-06-2013) को पलटे नित-प्रति पृष्ट, आज पलटे फिर रविकर चर्चा मंच 1268 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. जेनी जी बहुत सुन्दर बिम्ब ....गहरी बात....

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  3. आपने अप्रत्यक्ष रूप से बहुत ही खुबसूरत नारी जीवन की व्याख्या की है , गौ माता की गरिमा न्यारी है वैसे ही नारी की गरिमा है हाँ आपकी बातें भी उतनी ही सच्ची हैं

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  4. नारी की भी कहीं न कहीं यही स्थिति है .... अच्छी रचना

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  5. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज (शुक्रवार, ७ जून, २०१३) के ब्लॉग बुलेटिन - घुंघरू पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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  6. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(8-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  7. दूध दुहने के लिये ,अपने बस में रखने के लिये व्यवस्था कर ली है न आदमी ने -कि खूँटे से बँधा रखो !

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  8. बहुत संवेदनशील सशक्त अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर

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  9. बेनामीजून 10, 2013 10:02 am

    खूंटे से बंधना या पिंजरे में कैद होना किसी को नहीं भाता - सार्थक प्रस्तुति

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  10. ' वह जिंदा है
    वैसी ज़रूरतें
    सिर्फ वो ही पूरी कर सकती है
    इस लिए जिंदा रखी गई है
    जब चाहा
    दूसरे खूँटे से उसे बाँध दिया गया'

    - निरीह गाय है तभी तो ...!

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  11. समाज को आईना दिखाती है ये रचना , बहुत सुंदर आभार

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