बुधवार, 25 सितंबर 2013

419. पीर जिया की (7 ताँका)

पीर जिया की
(7 ताँका)

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1.
आँखों की कोर
जहाँ पे चुपके से  
ठहरा लोर, 
कहे निःशब्द कथा 
मन अपनी व्यथा !

2.
छलके आँसू 
बह गया कजरा 
दर्द पसरा, 
सुधबुध गँवाए
मन है घबराए !

3.
सह न पाए 
मन कह न पाए
पीर जिया की,  
फिर आँसू पिघले  
छुप-छुप बरसे ! 

4.
मौसम आया 
बहा कर ले गया 
आँसू की नदी,  
छँट गयी बदरी 
जो आँखों में थी घिरी !  

5.
मन का दर्द 
तुम अब क्या जानो 
क्यों पहचानो, 
हुए जो परदेसी
छूटे हैं नाते देसी !

6. 
बैरंग लौटे 
मेरी आँखों में आँसू 
खोए जो नाते, 
अनजानों के वास्ते 
काहे आँसू बहते ! 

7.
आँख का लोर 
बहता शाम-भोर, 
राह अगोरे 
ताखे पर ज़िंदगी 
नहीं कहीं अँजोर !
____________
लोर - आँसू 
अँजोर - उजाला
____________  

- जेन्नी शबनम (24. 9. 2013)

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15 टिप्‍पणियां:

  1. प्रत्येक ताँका को पढ़कर मन भीगने लगता है । काव्य की गहराई पाठक को अपने से जोड़ लेती है ।जेन्नी शबन जी आपने इस विधा को गरिमा प्रदान की है ।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (26-09-2013) चर्चा- 1380 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सुन्दर ताँके....
    सभी हृदयस्पर्शी...!!!


    सादर
    अनु

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  4. खूबसूरत ताका विधा मे जज़्बात

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  5. बैरंग लौटे
    मेरी आँखों में आँसू
    खोए जो नाते,
    अनजानों के वास्ते
    काहे आँसू बहते !
    ...दुखद लेकिन सुन्दर अभिव्यक्ति

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  6. जिया की पीर को तांका में बहुत खूबसूरती से पिरोया है .... भावपूर्ण तांका

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  7. मन का दर्द
    तुम अब क्या जानो
    क्यों पहचानो,
    हुए जो परदेसी
    छूटे हैं नाते देसी ! ...
    मन की गहरी उदासी शब्द ले के बह आई हो जैसे ... भावपूर्ण हैं सभी छंद ..

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  8. AAPKEE CHHOTEE - CHHOTEE KAVITAAON
    MEIN DARD MAN KO CHHOOTAA HAI .
    BHAVABHIVYAKTI SUNDAR HAI .

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