बुधवार, 30 सितंबर 2015

498. तुम्हारा इंतज़ार है (क्षणिका) (पुस्तक - 39)

तुम्हारा इंतज़ार है

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मेरा शहर अब मुझे आवाज़ नहीं देता  
नहीं पूछता मेरा हाल
नहीं जानना चाहता मेरी अनुपस्थिति की वजह
वक़्त के साथ शहर भी संवेदनहीन हो गया है
या फिर नई जमात से फ़ुर्सत नहीं   
कि पुराने साथी को याद करे
कभी तो कहे- "आ जाओ, तुम्हारा इंतज़ार है!'' 

- जेन्नी शबनम (30. 9. 2015)  
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8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 02 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. दिल के कोने-कोने को ठकठका गई आपकी कविता। आप जैसे लिखने वालों को , अच्छे जैसे लोगों को कोई कैसे भूल सकता है ! आपका लेखन लीक से हटकर है, सदा कुछ नया रहता है। यही कह सकता हूँ -उत्तम !!

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  3. वर्तमान हालातों का सटीक चित्रण | अब ये इंतज़ार लम्हों दिनों महीनों से बीतता हुआ युगों तक होता जा रहा है | सुन्दर सरल बात

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  4. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (02.10.2015) को "दूसरों की खुशी में खुश होना "(चर्चा अंक-2116) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ, सादर...!

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  5. सुन्दर ख़याल, बेहतरीन अभिव्यक्ति!

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  6. आपकी कविताएँ हमेशा दिल छूती हैं...| मेरी बहुत बधाई...|

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