शुक्रवार, 20 मई 2016

513. इश्क़ की केतली

इश्क़ की केतली

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इश्क़ की केतली में  
पानी-सी औरत 
और चाय पत्ती-सा मर्द  
जब साथ-साथ उबलते हैं
चाय की सूरत  
चाय की सीरत  
नसों में नशा-सा पसरता है  
पानी-सी औरत का रूप  
बदल जाता है चाय पत्ती-से मर्द में  
और मर्द घुलकर  
दे देता है अपना सारा रंग  
इश्क़ ख़त्म हो जाए  
मगर हर कोशिशों के बावजूद  
पानी-सी अपनी सीरत   
नहीं बदलती औरत  
मर्द अलग हो जाता है  
मगर उसका रंग खो जाता है  
क्योंकि इश्क़ की केतली में  
एक बार  
औरत मर्द मिल चुके होते हैं।  

- जेन्नी शबनम (20. 5, 2016)
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6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 22 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-05-2016) को "गौतम बुद्ध का मध्यम मार्ग" (चर्चा अंक-2350) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    बुद्ध पूर्णिमा की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत खूब ... गहरी सोच और अनोखे बिम्ब संजोये हैं इस रचना में .....

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  4. आपकी इस रचना में आपने जो पति-पत्नी को पानी व चायपत्ती से तुलनात्मक वर्णन करते हुए इस रचना को गढ़ा है , वो वाकई बहुत ही दिलचस्प है.....आप अपनी ऐसी ही रचनाओं को अन्य पाठकों तक लाने के लिए शब्दनगरीका प्रयोग कर एक नई पहचान बना सकती हैं.........

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