सूरज नासपिटा
*******
सूरज पीला
पूरब से निकला
पूरे रौब से
गगन पे जा बैठा,
गोल घूमता
सूरज नासपिटा
आग बबूला
क्रोधित हो घूरता,
लावा उगला
पेड़-पौधा जलाए
पशु-इंसान
सब छटपटाए
हवा दहकी
धरती भी सुलगी
नदी बहकी
कारे बदरा ने ज्यों
ली अँगड़ाई
सावन घटा छाई
सूरज चौंका
''मुझसे बड़ा कौन?
मुझे जो ढँका'',
फिर बदरा हँसा
हँस के बोला -
''सुनो, सावन आया
मैं नहीं बड़ा
प्रकृति का नियम
तुम जलोगे
जो आग उगलोगे
तुम्हें बुझाने
मुझे आना ही होगा'',
सूरज शांत
मेघ से हुआ गीला
लाल सूरज
धीमे-धीमे सरका
पश्चिम चला
धरती में समाया
गहरी नींद सोया !
- जेन्नी शबनम (20. 5. 2016)
_________________________
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (06-06-2016) को "पेड़ कटा-अतिक्रमण हटा" (चर्चा अंक-2365) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूरज तो अपना क्रम कर रहा है ... यही प्राकृति है यही जीवन है ...
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत खूब
जवाब देंहटाएं