बुधवार, 9 अगस्त 2017

554. सँवार लूँ (क्षणिका)

सँवार लूँ

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मन चाहता है  
एक बोरी सपनों के बीज  
मन के मरुस्थल में छिड़क दूँ  
मनचाहे सपने उगा ज़िन्दगी सँवार लूँ।  

- जेन्नी शबनम (9. 8. 2017) 
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5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10-08-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2892 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. बहुत सुन्दर ! काबिलेतारीफ़ आभार। "एकलव्य"

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (11-08-2017) को "हम तुम्हें हाल-ए-दिल सुनाएँगे" (चर्चा अंक 2693) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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