रविवार, 31 मार्च 2019

612. प्रकृति (20 हाइकु) पुस्तक 106-109

प्रकृति    

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1.   
प्यार मिलता   
तभी खिलखिलाता   
प्रकृति-शिशु।   

2.   
अद्भुत लीला   
प्रकृति प्राण देती   
संस्कृति जीती।   

3.   
प्रकृति हँसी   
सुहावना मौसम   
खिलखिलाया।   

4.   
धोखा पाकर   
प्रकृति यूँ ठिठकी   
मानो लड़की।   

5.   
कृत संकल्प   
प्रकृति का वंदन   
स्वस्थ जीवन।   

6.   
मत रूलाओ,   
प्रकृति का रूदन   
ध्वस्त जीवन।   

7.   
प्रकृति क्रुद्ध,   
प्रलय है समीप   
हमारा कृत्य।   

8.   
रंग बाँटती   
प्रकृति रंगरेज़   
मनभावन।   

9.   
मौसमी हवा   
नाचती गाती चली   
प्रकृति ख़ुश।   

10.   
घना जंगल   
लुभावना मौसम   
प्रकृति नाची।   

11.   
धूल व धुआँ   
थकी हारी प्रकृति   
बेदम साँसें।   

12.   
साँसें उखड़ी   
अधमरी प्रकृति,   
मानव दैत्य।   

13.   
ख़ंजर भोंका   
मर गई प्रकृति   
मानव ख़ूनी।   

14.   
खेत बेहाल   
प्रकृति का बदला   
सूखा तालाब।   

15.   
सुकून देती   
गहरी साँस देती   
प्रकृति देवी।   

16.   
बड़ा सताया   
कलंकित मानव,   
प्रकृति रोती।   

17.   
सखी सहेली   
ऋतुएँ व प्रकृति   
दुःख बाँटती।   

18.   
हरी ओढ़नी   
भौतिकता ने छीनी   
प्रकृति नग्न।   

19.   
किससे बाँटें   
मुरझाई प्रकृति   
अपनी व्यथा।   

20.
जीभर लूटा
प्रकृति को दुत्कारा
लोभी मानव।   

- जेन्नी शबनम (29. 3. 2019)   
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7 टिप्‍पणियां:

  1. प्राकृतिक जीवंत हायकू
    बहुत सुंदर

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-04-2019) को "चेहरे पर लिखा अप्रैल फूल होता है" (चर्चा अंक-3293) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    अन्तर्राष्ट्रीय मूख दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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