पहचाना जाएगा
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वक़्त मुट्ठी से फिसलता, जीवन कैसे पहचाना जाएगा
कौन किसको देखे यहाँ, कोई कैसे पहचाना जाएगा।
ज़मीर कब कहाँ मरा, ये अब दिखाएगा कौन भला
हर शीशे में कालिख पुता, चेहरा कैसे पहचाना जाएगा।
कौन किसका है सगा, भला यह कौन किसको बताएगा
आईने में अक्स जब, ख़ुद का ही न पहचाना जाएगा।
टुकड़ों-टुकड़ों में ज़िन्दगी बीती, किस्त-किस्त में साँसें
पुरसुकून जीवन भला, अब कैसे ये पहचाना जाएगा।
रूठ गए सब अपने-पराए, हर ठोकर याद दिलाएगी
अपने पराए का भेद अब, 'शब' से न पहचाना जाएगा।
- जेन्नी शबनम (26. 7. 2020)
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उम्दा ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंबहुत सत्रीक लिखा है ... हर शेर सच्चा है ...
जवाब देंहटाएंसच है बहुत मुश्किल होगा चेहरा पहचानना ...
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सच बात लिखी है आपने ।बहुत मुश्किल है किसी को पहचानना ।सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंसुन्दर
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