ज़िन्दगी के सफ़हे
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ज़िन्दगी के सफ़हे पर चिंगारी धर दी किसी ने
जो सुलग रही है धीरे-धीरे
मौसम प्रतिकूल है, आँधियाँ विनाश का रूप ले चुकी हैं
सूरज झुलस रहा है, हवा और पानी का दम घुट रहा है
सन्नाटों से भरे इस दश्त में
क्या ज़िन्दगी के सफ़हे सफ़ेद रह पाएँगे?
झुलस तो गए हैं, बस राख बनने की देर है।
- जेन्नी शबनम (30. 8. 2020)
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वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (01 -9 -2020 ) को "शासन को चलाती है सुरा" (चर्चा अंक 3810) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
समय ओने समय पर इन्हें काला सफ़ेद करता रहता है ...
जवाब देंहटाएंशायद यही जीवन है ....
खुद ही काला कर के दुरुस्त भी कर देता है ... बहुत भावपूर्ण रचना ...
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 1 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वर्तमान समय का यथार्थ चित्रण।बेहतरीन आदरणीय दी 👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन सृजन सखी।
जवाब देंहटाएंजीवन की आग है, राख होने के पहले रोशनी भरनी है
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