रविवार, 20 दिसंबर 2020

703. तकरार (पुस्तक- नवधा)

तकरार 

*** 

आत्मा और बदन में तकरार जारी है  
बदन छोड़कर जाने को आत्मा उतावली है   
पर बदन हार नहीं मान रहा   
आत्मा को मुट्ठी से कसके भींचे हुए है   
थक गया, मगर राह रोके हुए है।
   
मैं मूकदर्शक-सी   
दोनों की हाथापाई देखती रहती हूँ  
कभी-कभी ग़ुस्सा होती हूँ   
तो कभी ख़ामोश रह जाती हूँ  
कभी आत्मा को रोकती हूँ   
तो कभी बदन को टोकती हूँ   
पर मेरा कहा दोनों नहीं सुनते   
और मैं बेबसी से उनको ताकती रह जाती हूँ।
   
कब कौन किससे नाता तोड़ ले   
कब किसी और जहाँ से नाता जोड़ ले   
कौन बेपरवाह हो जाए, कौन लाचार हो जाए   
कौन हार जाए, कौन जीत जाए   
कब सारे ताल्लुकात मुझसे छूट जाए   
कब हर बन्धन टूट जाए   
कुछ नहीं पता, अज्ञात से डरती हूँ   
जाने क्या होगा, डर से काँपती हूँ।
   
आत्मा और बदन साथ नहीं   
तो मैं कहाँ?   
तकरार जारी है   
पर मिटने के लिए   
मैं अभी राज़ी नहीं।   

-जेन्नी शबनम (20. 12. 2020) 
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18 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 21 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. देह और आत्मा एक दूसरे के पूरक हैं, एक दूसरे के बिना दोनों के अस्तित्व की कोई महत्ता नही. पर.... आप क्यों इतना सोच रही हैं? मिटने के बारे में सोचने की आवश्यकता नही. निराशा से नम हुई रचना mn और आँखों को आहत कर रही है प्यारी दोस्त! 😔🙏

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  3. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-12-20) को "शब्द" (चर्चा अंक- 3923) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  4. "आत्मा और बदन साथ नहीं
    तो मैं कहाँ?
    तकरार जारी है,
    पर मिटने के लिए
    मैं अभी राजी नहीं। "

    आत्मा और बदन दोनों से तटस्थ होकर रहना सम्भव कहाँ,बहुत ही सुंदर और आध्यत्मिक भाव से सराबोर,लाजबाब सृजन,सादर नमन

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  5. खूबसूरत और आकर्षक सृजन

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  6. आत्मा और बदन साथ नहीं
    तो मैं कहाँ?
    तकरार जारी है,
    पर मिटने के लिए
    मैं अभी राजी नहीं।

    वाह लाजवाब रचना।

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  7. जीवात्मा का यथार्थ चित्रण..सुन्दर सृजन..

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  8. आत्मा और बदन साथ नहीं
    तो मैं कहाँ?
    तकरार जारी है,
    पर मिटने के लिए
    मैं अभी राजी नहीं।

    प्रिय जेन्नी शबनम जी,
    आध्यात्मिक बिन्दुओं से निर्मित किसी रेखाचित्र की भांति पटल पर उभर कर सामने आई यह कविता बहुत गहराई लिए हुए है।
    अशेष शुभकामनाओं सहित साधुवाद 🙏
    - डॉ. वर्षा सिंह

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  9. संघर्ष की स्थिति में भी एक धनात्मक अंत की ओर ले जाती हुई सुंदर रचना
    ....मिटने के लिए
    मैं अभी राजी नहीं...
    साधुवाद व शुभ-कामनाएँ आदरणीया। ।।।

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  10. आत्मा और बदन साथ नहीं
    तो मैं कहाँ?
    तकरार जारी है,
    पर मिटने के लिए
    मैं अभी राजी नहीं।
    अक्सर इस तरह के भाव आते हैं मन में ..आपकी इस रचना से अपने आप को जुड़ा पाती हूँ । आभार इस सृजन हेतु ।

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  11. बहुत खूब ...
    ये तकरार रहनी चाहिए ... शरीर का जितना जरूरी है ... दोनों पूरक हैं ... एक का अस्तित्व दुसरे के होने से ही है ... गहरी रचना ...

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  12. रूह और जिस्म के बीच का गहन कथोपकथन मुग्ध करता है - - ख़ूबसूरत रचना।

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  13. सार्थक रचना। सुंदर प्रस्तुति। आपको बधाई। सादर

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