बुधवार, 9 जून 2021

725. पुनर्जीवित (पुस्तक- नवधा)

पुनर्जीवित 

*** 

मैं पुनर्जीवित होना चाहती हूँ   
अपने मन का करना चाहती हूँ   
छूटते सम्बन्ध टूटते रिश्ते   
वापस पाना चाहती हूँ   
वह सब जो निषेध रहा   
अब करना चाहती हूँ। 
   
आख़िरी पड़ाव पर पहुँचने के लिए   
अपने साये के साथ नहीं   
आँख मूँद किसी हाथ को थाम   
तेज़ी से चलना चाहती हूँ   
शिथिल शिराओं में थका रक्त   
दौड़ने की चाह रखता है। 
   
जीते-जीते कब जीने की चाह मिटी   
हौसले ने कब दम तोड़ा   
कब ज़िन्दगी से नाता टूटा   
चुप्पी ओढ़ बदन को ढोती रही   
एक अदृश्य कोने में रूह तड़पती रही। 
   
स्त्री हूँ, शुरू और अन्त के बीच   
कुछ पल जी लेना चाहती हूँ   
कुछ देर को अमृत पीना चाहती हूँ   
मैं फिर से जीना चाहती हूँ   
मैं पुनर्जीवित होना चाहती हूँ।   

-जेन्नी शबनम (9. 6. 2021) 
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8 टिप्‍पणियां:

  1. स्त्री हूँ, शुरू और अंत के बीच
    कुछ पल जी लेना चाहती हूँ
    कुछ देर को अमृत पीना चाहती हूँ
    मैं फिर से जीना चाहती हूँ
    मैं पुनर्जीवित होना चाहती हूँ।

    बहुत खूब,मेरी भी कुछ ऐसी ही तमन्ना है,सादर नमन

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२-०६-२०२१) को 'बारिश कितनी अच्छी यार..' (चर्चा अंक- ४०९३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. कुछ पल जी लेना चाहती हूँ
    कुछ देर को अमृत पीना चाहती हूँ
    मैं फिर से जीना चाहती हूँ
    मैं पुनर्जीवित होना चाहती हूँ।
    हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।

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  4. ये मन का संसार बेहद अनूठा है, इसमें विचारों का कोहरा भी होता है और कुहासा भी, शब्दों के पीछे भाव और भाव में गहरे तक डूबी हुई इस रचना के लिए मेरी ओर से खूब बधाई।

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  5. अथाह गहराई है सृजन में डूब कर ही भाव मोती मिल पाये ।
    अद्भुत सृजनात्मकता।

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