रविवार, 23 जनवरी 2022

737. समय (10 क्षणिका)

समय 

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1.
समय 

समय हर बार मरहम नहीं बनता  
कई बार पुराने से ज़्यादा बड़ा घाव दे देता है
जो ताउम्र नहीं भरता 
उस घाव का 
सड़ना गलना और मवाद का बहना देख
अपनी ताक़त पर घमंड करता समय 
हाथ बाँधे अकड़कर खड़ा रहता है।
-०-

2.
रुदाली 

मन में अनुभव की किरचें हैं
जो हर घड़ी चुभती हैं
चुप ज़बान में गीतों की लड़ी है  
जो रुदन बन गूँजती है 
बिखरते सपनों की छटपटाहट है  
जो हर घड़ी टीस देती है 
दर्द के फाहे से दर्द को पोंछती हूँ 
और अपनी साँसे कुतरती हूँ 
ज़िन्दगी की अर्थी सजी है  
मैं रुदाली बन गई हूँ। 
-०-

3.
नटी

यूँ मानो तनी हुई रस्सी पर
नटी की तरह कलाबाज़ी सीख ली है  
गिरते-पड़ते-उठते संतुलन बना लिया मैंने  
अब अग्रसर हूँ 
जीवन जीने की कला के साथ।
-०- 

4.
काग़ज़ 

मैं फूल-सी जन्म लेकर
एक समर्थ लड़की बनी
दुनिया के तीखे बोल से
मैं फूल से पत्थर बनी
अपने दर्द ख़ुद से कहकर
पत्थर से काग़ज़ बनी
अब हर्फ़-हर्फ़ बिखरी हूँ मैं
काग़ज़ों में रची हूँ मैं
अपने दिए ज़ख्मों को
अब तुम सब ख़ुद ही पढ़ो।
-०-

5.
गाँठ 

मानो या  मानोफ़रेब नहीं था
बस नादानियाँ थीं थोड़ी
जिसने  जीने दिया  मरने
दिल की दहलीज़ पर एक गाँठ पड़ गई
जिससे रिश्तों की डोरी छोटी पड़ गई
मन में चुभती ये गाँठें
मेरे जज़्बात को हदों में रखती हैं। 
-०- 

6.
देर न हो जाए

बेहद कठिन होता है
पीली पड़ती पत्तियों को हरा करना
मर रहे पौधों को जिलाना 
बीत चुके मौसम को यादों में ही सही
वापस बुलाना
देर न हो जाए, सँभल जाओ
वरना सारे तर्क और सारे फ़लसफ़े
धरे रह जाएँगे 
और झंकृत दुनिया वीरान हो जाएगी
वक़्त को मुरझाने से पहले सींच लो।
-०-

7.
मिन्नत 

चाँदनी की चाह में
करती रही चाँद से मिन्नतें 
चाँद दग़ा दे गया
अपनी चाँदनी ले गया
जाने किसे दे दिया?
मुझमें अमावास भर गया 
हाय! ये क्या कर गया 
क्यों बेवफ़ा हो गया?
-0-

8.
ताप भर नाता 

ताप भर नाता 
दिल में बचाए रखना
जब सामने रास्ता होगा
पर ज़िन्दगी चल न सकेगी
ठंडी पड़ रही साँसों को
तब ज़रुरत होगी।
-0-

9.
संगदिल 

जाओ! तुम सबको आज़ाद किया 
रिश्ते-नाते और कर्तव्यों से 
संगदिल के साथ 
कुछ वक़्त गुज़ारा जा सकता है 
तमाम उम्र नहीं। 
-0-

10.
इस दुनिया के उस पार 

अपनी समस्त आकांक्षाओं के साथ 
चली जाना चाहती हूँ  
सबसे दूर बहुत दूर 
इस दुनिया के उस पार 
जहाँ से मेरी पुकार 
कभी किसी तक न पहुँचे। 
-0- 

- जेन्नी शबनम (1. 1. 2022)
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2 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (24-01-2022 ) को 'वरना सारे तर्क और सारे फ़लसफ़े धरे रह जाएँगे' (चर्चा अंक 4320 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. मन में अनुभव की किरचें हैं
    जो हर घड़ी चुभती हैं
    चुप ज़बान में गीतों की लड़ी है
    जो रुदन बन गूँजती है
    बिखरते सपनों की छटपटाहट है
    जो हर घड़ी टीस देती है
    दर्द के फाहे से दर्द को पोंछती हूँ
    और अपनी साँसे कुतरती हूँ
    ज़िन्दगी की अर्थी सजी है
    मैं रुदाली बन गई हूँ।
    बहुत ही उम्दा व मार्मिक

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