बुधवार, 12 जून 2024

776. कशमकश

कशमकश

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रिश्तों की कशमकश में ज़ेहन उलझा है
उम्र और रिश्तों के इतने बरस बीते 
मगर आधा भी नहीं समझा है
फ़क़त एक नाते के वास्ते
कितने-कितने फ़रेब सहे
बिना शिकायत बिना कुछ कहे
घुट-घुटकर जीने से बेहतर है 
तोड़ दें नाम के वे सभी नाते
जो मुझे बिल्कुल समझ नहीं आते।

- जेन्नी शबनम (12.6.2021)
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7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 13 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. बहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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