सोमवार, 28 मार्च 2011

225. फ़ासला बना लिया

फ़ासला बना लिया...

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खड़ी थी सागर किनारे
मगर लहरों ने डुबो दिया
दरकिनार नहीं होती ज़िन्दगी
हर जतन करके देख लिया

उड़ी थी तब आसमान में
जब सीने से तुमने लगाया
जाने तब तुम कहाँ थे खोये
जब धड़कनों ने तुम्हें बसा लिया

सबब जीने का मुझे मिला
मगर जुर्माना भी अदा किया
मुनासिब है हर राज़ बना रहे
ख़ुद मैंने फ़ासला बना लिया

बदल ही गई मन की फ़िज़ा
जाने ख़ुदा ने ये क्यों किया
तुमपे न आए कभी कोई आँच
इश्क़ में मिटना मैंने सीख लिया

एक नज़र देख लूँ आख़िरी ख़्वाहिश मेरी
बरस पड़ी आँखें जब हुई तुमसे जुदा
तुम क्या जानो दिल मेरा कितना तड़पा
शायद हो अंतिम मिलन सोच दिल भी रो लिया

बेकरारी बढ़ती रही मगर क़दम को रुकना पड़ा
मालूम है कि न मिलेंगे पर इंतज़ार हर पल रहा
तुम आओ कि न आओ यह तुम्हारा फ़ैसला
'शब' हुई बेवफ़ा और होंठों को उसने सी लिया 

- जेन्नी शबनम (22 . 3 . 2011)
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6 टिप्‍पणियां:

  1. एक नज़र देख लूँ आख़िरी ख़्वाहिश मेरी
    बरस पड़ी आँखें जब हुई तुमसे जुदा,
    तुम क्या जानो दिल मेरा कितना तड़पा
    शायद हो अंतिम मिलन सोच दिल भी रो लिया !
    ... dil ko chhuti rachna

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  2. मालूम है कि न मिलेंगे पर इंतज़ार हर पल रहा,
    bahut sunder rachna.

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  3. तुम क्या जानो दिल मेरा कितना तड़पा
    शायद हो अंतिम मिलन सोच दिल भी रो लिया ।


    भावमय करते शब्‍द ।

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  4. उड़ी थी तब आसमान में
    जब सीने से तुमने लगाया,
    -इन पंक्तियों में मिलन के प्रभाव का हृदयहारी चित्रण है;
    -जीने का सबब जानकर प्रेम के उन क्षणों के लिए जीवन भर ज़ुर्माना भरना भी ज़ुर्माना नही लगता ।
    सबब जीने का मुझे मिला
    मगर जुर्माना भी अदा किया।
    -जुदा होने का दुख और अन्तिम बार प्रिय को आंखभर्कर देखना बहुत भाव विह्वल और बेचैन करने वाला दृश्य है ।
    जेन्नी जी आपके इस लेखन को सज़दा करता हूँ॥ आपने इस कविता में व्यथा का सागर ही भर दिया है ,

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  5. एक नज़र देख लूँ आख़िरी ख़्वाहिश मेरी
    बरस पड़ी आँखें जब हुई तुमसे जुदा,
    तुम क्या जानो दिल मेरा कितना तड़पा
    शायद हो अंतिम मिलन सोच दिल भी रो लिया !
    बेहतरीन कविता लगी...

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