रविवार, 2 जून 2013

407. शगुन (क्षणिका)

शगुन

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हवा हर सुबह चुप्पी ओढ़ 
अँजुरी में अमृत भर 
सूर्य को अर्पित करती है 
पर सूरज है कि जलने के सिवा 
कोई शगुन नहीं देता।  

- जेन्नी शबनम (2. 6. 2013)
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11 टिप्‍पणियां:

  1. सूरज ऐसा ही है ... अपना धर्म जो करता है ...
    भावमय रचना ...

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  2. पहले गलत सूचना लगा गई है ...अब यह है
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (03-06-2013) के :चर्चा मंच 1264 पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
    सूचनार्थ |

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  3. सचमुच यह सूर्य बहुत कंजूस है । हवाओं को कुछ नहीं दिया ।आपने शगुन का बहुत प्रभावशाली प्रयोग किया है । इस नवीन उद्भावना के लिए आपको बहुत साधुवाद !इन पंक्तियों पर आपको शगुन मिलना चाहिए !

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  4. अच्छी रचना.
    सूरज के पास देने को रौशनी है ,शगुन ?

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  5. बहुत सुन्दर..अभिव्यंजना में आप का स्वागत है..

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  6. पर सूरज है कि
    जलने के सिवा
    कोई शगुन नहीं देता...!
    Waah!

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  7. शबनम जी सूरज जब उगता है तो दिन की शुरुवात होती है और नयी उमंग के साथ दिन का स्वागत करता है उसी प्रकार हमें भी अपनी पुराणी समस्याओं से निकल नयी उर्जा के साथ अपनी मंजिल की तरफ बढ़ना चाहिए .... सादर !

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  8. हम जो हैं वो न करें तो सूरज कैसे कहलायेंगे

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