सोमवार, 28 अप्रैल 2014

453. गुमसुम ये हवा (स्त्री पर 7 हाइकु) पुस्तक 54

गुमसुम ये हवा 

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1.
गाती है गीत
गुमसुम ये हवा
नारी की व्यथा। 

2.
रोज़ सोचती
बदलेगी क़िस्मत
हारी औरत। 

3.
ख़ूब हँसती
ख़ुद को ही कोसती
दर्द ढाँपती। 

4.
रोज़-ब-रोज़
ख़ाक होती ज़िन्दगी
औरत बंदी। 

5.
जीतनी होगी
युगों पुरानी जंग
औरतें जागी। 

6.
बहुत दूर
आसमान ख़्वाबों का
स्त्रियों का सच।  

7. जीत न पाई
ज़िन्दगी की लड़ाई
मौन स्वीकार। 

- जेन्नी शबनम (8. 3. 2014)
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शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

452. बहुरुपिया (5 ताँका)

बहुरुपिया 
(5 ताँका)

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1.
हवाई यात्रा
करता ही रहता
मेरा सपना
न पहुँचा ही कहीं
न रुका ही कभी !

2.
बहुरुपिया
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा !

3.
कभी न जला
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया !

4.
कहीं डँसे न
मानव केंचुल में
छुपे हैं नाग
मीठी बोली बोल के
करें विष वमन !

5.
साथ हमारा 
धरा-नभ का नाता  
मिलते नहीं  
मगर यूँ लगता -
आलिंगनबद्ध हों !

- जेन्नी शबनम (16. 4. 2014)

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रविवार, 20 अप्रैल 2014

451. मतलब

मतलब

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छोटे-छोटे दुःख सुनना
न मुझे पसंद है न तुम्हें
यूँ तुमने कभी मना नहीं किया कि न बताऊँ 
पर जिस अनमने भाव से सब सुनते हो 
समझ आ जाता है कि तुमको पसंद नहीं आ रहा 
हमारे बीच ऐसा अनऔपचारिक रिश्ता है कि
हम कुछ भी किसी को बताने से मना नहीं करते 
परन्तु 
सिर्फ़ कहने भर को कहते हैं 
सुनने भर को सुनते हैं
न जानना चाहते हैं, न समझना चाहते हैं    
हम कोई मतलब नहीं रखते
एक दूसरे के 
सुख से, दुःख से, ज़िन्दगी से, फ़ितरत से 
बस एक कोई गाँठ है 
जो जोड़े हुए है 
जो टूटती नहीं 
शायद इस लिए हम जुड़े हुए हैं 
अपना-अपना मतलब साध रहे हैं। 

- जेन्नी शबनम (20. 4. 2014)
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गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

450. चाँद-चाँदनी (चाँद पर 7 हाइकु) पुस्तक 53,54

चाँद-चाँदनी

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1.
तप करता
श्मशान में रात को
अघोरी चाँद। !

2.
चाँद न आया
इंतज़ार करती
रात परेशाँ। 

3.
वादाख़िलाफ़ी
चाँद ने की आज भी  
फिर न आया। 

4.
ख़्वाबों में आई
दबे पाँव चाँदनी
बरगलाने।

5.
तमाम रात
आँधियाँ चलीं, पर
चाँद न उड़ा।

6.
पूरनमासी
जिनगी में है लाई
पी का सनेस।

7.
नशे में धुत्त
लड़खड़ाता चाँद
झील में डूबा।

- जेन्नी शबनम (11. 4. 2014)
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शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

449. समय-रथ (समय पर 4 हाइकु) पुस्तक 53

समय-रथ 

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1.
रोके न रुके 
अपनी चाल चले 
समय-रथ। 

2.
न देख पीछे 
सब अपने छूटे
यही है सच। 

3.  
नहीं फूटता 
सदा भरा रहता
दुःखों का घट।   

4.
स्वीकार किया 
ज़िन्दगी से जो मिला 
नहीं शिकवा। 

- जेन्नी शबनम (24. 3. 2014)
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शनिवार, 5 अप्रैल 2014

448. पात झरे यूँ (पतझर पर 10 हाइकु) पुस्तक 52,53

पात झरे यूँ 

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1.
पात झरे यूँ 
तितर-बितर ज्यूँ 
चाँदनी गिरे।

2.
पतझर ने 
छीन लिए लिबास
गाछ उदास

3.
शैतान हवा
वृक्ष की हरीतिमा
ले गई उड़ा

4.
सूनी है डाली
चिड़िया न तितली
आँधी ले उड़ी।

5.
ख़ुशी बिफरी 
मन में पतझर
उदासी फैली

6.
खुशियाँ झरी
जिन्दगी की शाख़ से
ज्यों पतझर।

7.
काश मैं होती
गुलमोहर जैसी
बेपरवाह।

8.
फिर खिलेगी
मौसम कह गया
सूनी बगिया।

9.
न रोको कभी
आकर जाएँगे ही
मौसम सभी।

10.
जिन्दगी ऐसी
पतझर के बाद
वीरानी जैसी।

- जेन्नी शबनम (4. 4. 2014)
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