फ़ना हो जाऊँ
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मन चाहे बस सो जाऊँ
तेरे सपनों में खो जाऊँ।
सब तो छोड़ गए हैं तुमको
पर मैं कैसे बोलो जाऊँ।
बड़ों के दुःख में दुनिया रोती
दुःख अपना तन्हा रो जाऊँ।
फूल उगाते ग़ैर की ख़ातिर
ख़ुद के लिए काँटे बो जाऊँ।
ताउम्र मोहब्बत की खेती की
कैसे ज़हर मैं अब बो जाऊँ।
मिला न कोई इधर अपना तो
'शब' सोचे कि फ़ना हो जाऊँ।
- जेन्नी शबनम (25. 7. 2014)
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