शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

463. फ़ना हो जाऊँ (तुकांत)

फ़ना हो जाऊँ

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मन चाहे बस सो जाऊँ  
तेरे सपनों में खो जाऊँ।   

सब तो छोड़ गए हैं तुमको   
पर मैं कैसे बोलो जाऊँ।   

बड़ों के दुःख में दुनिया रोती  
दुःख अपना तन्हा रो जाऊँ।   

फूल उगाते ग़ैर की ख़ातिर  
ख़ुद के लिए काँटे बो जाऊँ।   

ताउम्र मोहब्बत की खेती की   
कैसे ज़हर मैं अब बो जाऊँ।   

मिला न कोई इधर अपना तो  
'शब' सोचे कि फ़ना हो जाऊँ।   

- जेन्नी शबनम (25. 7. 2014)  
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शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

462. चकरघिन्नी (क्षणिका)

चकरघिन्नी

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चकरघिन्नी-सी घूमती-घूमती 
ज़िन्दगी जाने किधर चल पड़ती है
सब कुछ वही, वैसे ही 
जैसे ठहरा हुआ-सा, मेरे वक़्त-सा  
पाँव में चक्र, जीवन में चक्र  
संतुलन बिगड़ता है  
मगर सब कुछ आधारहीन निरर्थक भी तो नहीं   
आख़िर कभी न कभी, कहीं न कहीं
ज़िन्दगी रुक ही जाती है। 

- जेन्नी शबनम (11. 7. 2014)
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सोमवार, 7 जुलाई 2014

461. इम्म्युन

इम्म्युन

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पूरी की पूरी बदल चुकी हूँ
अब तक ग़ैरों से छुपती थी
अब ख़ुद से बचती हूँ
अपने वजूद को
अलमारी के उस दराज़ में रख दी हूँ 
जहाँ गैरों का धन रखा होता है 
चाहे सड़े या गले पर नज़र न आए
यूँ भी, मैं इम्म्युन हूँ
हमारी क़ौमें ऐसी ही जन्मती हैं
बिना सींचे पनपती हैं,
इतना ही काफ़ी है
मेरा 'मैं' दराज़ में महफ़ूज़ है,
ग़ैरों के वतन में
इतनी ज़मीन नहीं मिलती कि
'मैं हूँ' ये सोच सकूँ
और ख़ुद को
अपने आईने में देख सकूँ। 

- जेन्नी शबनम (7. 7. 2014)
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मंगलवार, 1 जुलाई 2014

460. स्मृतियाँ शूल (10 हाइकु) पुस्तक 56, 57

स्मृतियाँ शूल 

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1.
तय हुआ है-
मौसम बदलेगा
बर्फ़ जलेगी।

2.
लेकर चली
चींटियों की क़तार
मीठा पहाड़।

3.
तमाम रात
धकेलती ही रही
यादों की गाड़ी।

4.
आँखें मींचती
सूर्य के गले लगी
धरा जो जागी।

5.
जाने क्या सोचे
यायावर-सा फिरे
बादल जोगी।

6.
डरे होते हैं-
बेघर न हो जाएँ 
मेरे सपने 

7.
हार या जीत 
बेनाम-सी उम्मीद 
ज़मींदोज़ क्यों?

8.
ख़ारिज हुई 
जब भी भेजी अर्ज़ी 
ख़ुदा की मर्ज़ी। 

9.
जश्न मनाता 
सूरज निकलता 
हो कोई ऋतु। 

10.
जब उभरें  
लहुलूहान करें 
स्मृतियाँ शूल। 

- जेन्नी शबनम (5. 6. 2014)
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