गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

28. शाइर

शाइर

*******

शाइर के अल्फ़ाज़ में
जाने किसकी रूह तड़पती है
हर हर्फ़ में जाने कौन सिसकता है
ख़्वाबों में जाने कौन पनाह लेता है

किसका अफ़साना लिए वो लम्हा-लम्हा जलता है
किसका दर्द वो अपने लफ़्ज़ों में पिरोता है
किसका जीवन वो यादों में पल-पल जीता है

शायद जज़्बाती है, रूहानी है, वो इंसान है
शायद मासूम है, मायूस है, वो बेमिसाल है
इसीलिए तो ग़ैरों के आँसू अपने शब्दों से पोंछता है
और दुनिया का ज़ख़्म सहेजकर शाइर कहलाता है । 

- जेन्नी शबनम (सितम्बर 5, 2008)
_______________________________________

1 टिप्पणी: