मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

383. औरत : एक बावरी चिड़ी (7 हाइकु) पुस्तक 30, 31

औरत : एक बावरी चिड़ी 

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1.
चिड़िया उड़ी
बाबुल की बगिया 
सूनी हो गई।

2.
ओ चिरइया 
कहाँ उड़ तू चली 
ले गई ख़ुशी।

3.
चिड़ी चाहती
मन में ये कहती-
''बाबुल आओ''

4.
चिड़ी कहती-
काश! वह जा पाती 
बाबुल-घर।

5.
बावरी चिड़ी
ग़ैरों में वो ढूँढती
अपनापन।

6.
उड़ी जो चिड़ी
रुकती नहीं कहीं 
यही ज़िन्दगी।

7.
लौट न पाई  
एक बार जो उड़ी 
कोई भी चिड़ी।

- जेन्नी शबनम (1. 2. 2013)
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16 टिप्‍पणियां:

  1. चिड़िया के माध्यम से सटीक कहा है एक नारी की यही ज़िंदगी होती है । अच्छे हाइकु

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  2. लौट न पाई
    एक बार जो उड़ी
    कोई भी चिड़ी ।

    डॉ जेन्नी शबनम जी बाबुल का घर हमेशा खुला रहता है . बेटी शायद माँ से जुड़े रिश्तों से उबर नहीं पाती . साथ ही घोंसला बदल जाने से अपने भी पराये से लगने लगते हैं शायद यही कारन हो? हम भी जाकर लौटना नहीं चाहते।

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  3. सभी की सभी क्षणिकाएं बहुत ही भावपूर्ण और सुन्दर हैं |हमारे ब्लॉग पर आकर अपने सुंदर कमेंट्स से मेरे कवि मन को गुदगुदाने के लिए आपका बहुत -बहुत आभार |

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  4. चिड़िया - पिंजड़े की
    उड़ना तो तय है
    अधिक उड़ान ......... अस्तित्व की पहचान

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  5. लौट न पाई
    एक बार जो उड़ी
    कोई भी चिड़ी ।

    Nice Poetry

    http://sarikkhan.blogspot.in/
    http://nice7389328376.blogspot.in/

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  6. बहही सुन्दर हाइकू,आभार है आपका.

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  7. चिड़ी कहती -
    काश ! वह जा पाती
    बाबुल घर ..

    बहुत संवेदनशील हैं सभी हाइकू .... सामजस्य है निरीह चिड़िया ओर ओरत के जीवन में ...

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  8. वाह! चिड़ी उड़ी सो उड़ी, बहुत सुन्दर.. : नीरज

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  9. चिड़ी उड़ी सो उड़ी.. बहुत खूब! : नीरज

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  10. नारी के जीवन की समग्र कथा चंद हाइकू के माध्यम से बड़ी कुशलता से कह दी है ! एक गीत याद आ गया ---
    बाबुल हम तेरे अंगना की चिड़िया
    दो दिन यहाँ सौ दिन घर पराये !

    बहुत सुन्दर रचना ! शुभकामनाएं !

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  11. बहुत सुंदर दिल को छूती हुई प्रस्तुति बधाई आपको एक बार जो गई चिड़ि लौट के कहाँ आई

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  12. वैसे तो सभी हाइकु अच्छे हैं पर यह विशिष्ट है-
    7.
    लौट न पाई
    एक बार जो उड़ी
    कोई भी चिड़ी ।

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