बुधवार, 3 अप्रैल 2013

397. अद्भुत रूप (5 ताँका)

अद्भुत रूप (5 ताँका) 

*******

1.
नीले नभ से
झाँक रहा सूरज, 
बदली खिली 
भीगने को आतुर
धरा का कण-कण ! 

2.
झूमती नदी 
बतियाती लहरें
बलखाती है 
ज्यों नागिन हो कोई  
अद्भुत रूप लिये !

3.
मैली कुचैली 
रोज़-रोज़ है होती
पापों को धोती, 
किसी को न रोकती 
बिचारी नदी रोती ! 

4.
जल उठा है 
फिर से एक बार 
बेचारा चाँद 
जाने क्यों चाँदनी है 
रूठी अबकी बार ! 

5.
उठ गया जो 
दाना-पानी उसका 
उड़ गया वो,
भटके वन-वन 
परिंदों का जीवन !

- जेन्नी शबनम (1. 4. 2013)

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19 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर सहज सार्थक
    जीवंत रचना
    मन को छूती अनुभूति सुंदर अहसास
    बहुत बहुत बधाई


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  2. जल उठा है फिर से एक बार बेचारा चाँद जाने क्यों चाँदनी है रूठी अबकी बार !

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,
    Recent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग

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  3. सजीव शाब्दिक चित्रण भावनाओं का ....!!
    बहुत सुन्दर लिखा है जेन्नी जी ....!!

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  4. सभी ताँका बहुत भावपूर्ण व अर्थपूर्ण !
    ~सादर!!!

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  5. सभी ताँके सुन्दर.....
    लाजवाब!!

    अनु

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  6. मैली कुचैली
    रोज़-रोज़ है होती
    पापों को धोती,
    किसी को न रोकती
    बिचारी नदी रोती ...

    बहुत प्रभावी गहरा अर्थ लिए सभी क्षणिकाएं ....
    बेहतरीन ...

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  7. बहुत ही बढ़िया क्षणिकाएं..

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  8. सभी ताँका बहुत भावपूर्ण सहज सुंदर... जेन्नी जी बधाई...

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  9. 4.
    जल उठा है
    फिर से एक बार
    बेचारा चाँद
    जाने क्यों चाँदनी है
    रूठी अबकी बार !

    5.
    उठ गया जो
    दाना-पानी उसका
    उड़ गया वो,
    भटके वन-वन
    परिंदों का जीवन !

    खुबसूरत एहसास लिए अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  10. जल उठा है
    फिर से एक बार
    बेचारा चाँद
    जाने क्यों चाँदनी है
    रूठी अबकी बार !

    गज़ब के ताँके ...!!

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  11. सुंदर रचना भावनाओं का सुंदर चित्रण.........

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  12. बहुत सुंदर सजीव अभिव्यक्ति

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  13. वाह! सभी क्षणिकाएं बेहतरीन!
    सादर
    मधुरेश

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  14. क्षमा चाहता हूँ, मुझे इस बात की कम समझ है कि ये क्षणिकाएं कहलाती हैं या ताँके .. रुचिवश ही केवल हिंदी पठन-लेखन करता हूँ। परन्तु जो भी कहलाती हों, बहुत अच्छे लिखे गए हैं, संक्षेप में बहुत कुछ कहते शब्द।
    सादर
    मधुरेश

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  15. मैली कुचैली
    रोज़-रोज़ है होती
    पापों को धोती,
    किसी को न रोकती
    बिचारी नदी रोती ...

    सभी रचनाएँ बेहतरीन .... नदी के दर्द को भी बखूबी उकेरा है ।

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  16. मैली कुचैली
    रोज़-रोज़ है होती
    पापों को धोती,
    किसी को न रोकती
    बिचारी नदी रोती !
    बेहद गहन भाव लिए ... अनुपम प्रस्‍तुति

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  17. बहुत सुंदर रचना , शुभकामनाये ,

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