बुधवार, 17 अप्रैल 2013

399. इलज़ाम न दो

इलज़ाम न दो

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आरोप निराधार नहीं 
सचमुच तटस्थ हो चुकी हूँ 
संभावनाओं की सारी गुंजाइश मिटा रही हूँ 
जैसे रेत पे ज़िन्दगी लिख रही हूँ
मेरी नसों का लहू आग में लिपटा पड़ा है 
पर मैं बेचैन नहीं
जाने किस मौसम का इंतज़ार है मुझे?
आग के राख में बदल जाने का 
या बची संवेदनाओं से प्रस्फुटित कविता के 
कराहती हुई इंसानी हदों से दूर चली जाने का
शायद इंतज़ार है 
उस मौसम का जब 
धरती के गर्भ की रासायनिक प्रक्रिया 
मेरे मन में होने लगे 
तब न रोकना मुझे न टोकना 
क्या मालूम 
राख में कुछ चिंगारी शेष हो 
जो तुम्हारे जुनून की हदों से वाक़िफ़ हों
और ज्वालामुखी-सी फट पड़े 
क्या मालूम मुझ पर थोपी गई लांछन की तहरीर 
बदल दे तेरे हाथों की लकीर
बेहतर है 
मेरी तटस्थता को इलज़ाम न दो
मेरी ख़ामोशी को आवाज़ न दो
एक बार 
अपने गिरेबान में झाँक लो।  

- जेन्नी शबनम (21. 2. 2013)
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14 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी तटस्थता को इलज़ाम न दो
    मेरी ख़ामोशी को आवाज़ न दो
    एक बार अपने गिरेबान में झाँक लो !

    बहुत बेहतरीन भावअभिव्यक्ति सुंदर रचना,आभार,
    RECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.

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  2. बहुत बढ़िया...
    शायद हर नारी मन से यही भाव निकलते हों....

    सादर
    अनु

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  3. 'मेरी तटस्थता को इलज़ाम न दो
    मेरी ख़ामोशी को आवाज़ न दो
    एक बार
    अपने गिरेबान में झाँक लो !'
    -
    कुत्सित निर्लज्ज लाँछन,
    पनपे जो द्वेष की खाद में .
    बताते हैं विकृत रोगी मानसिकता का इतिहास ,
    असलियत सामने आ कर बोलती है ,
    इतना क्यों गिरें हम कि सफ़ाई देते फिरें?

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  4. गहरी रचना. सचमुच कई बार लोग मौन तोड़ने पर तुले रहते है पर ये नहीं जानते की वो कितना अनिष्टकर हो सकता है.

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  5. आस पास के लोगों के व्यवहार से भी मन में तटस्थता आ जाती है ... बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  6. बहुत ही सुन्दर ढंग से कलम ने अपना काम किया है |अच्छी कविता डॉ शबनम जी आदाब |

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  7. आज की ब्लॉग बुलेटिन गुड ईवनिंग लीजिये पेश है आज शाम की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  8. बेहतर है
    मेरी तटस्थता को इलज़ाम न दो
    मेरी ख़ामोशी को आवाज़ न दो
    एक बार
    अपने गिरेबान में झाँक लो !

    beautiful lines with great emotions

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  9. सुन्दर, भावपूर्ण और शालीन शब्दावली से सुशोभित रचना | आभार

    अत्यंत सुन्दर और भावपूर रचना विकेश भाई | शुक्र है किसी ने तो सोचा ऐसों के बारे में | ईश्वर उन्हें शांति प्रदान करे | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  10. यथोचित सम्मान सहित डा. साहिबा
    जाने किस मौसम का इंतज़ार है मुझे?

    कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए

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  11. क्या मालूम
    राख में कुछ चिंगारी शेष हो
    जो तुम्हारे जुनून की हदों से वाकिफ हों
    और ज्वालामुखी-सी फट पड़े
    क्या मालूम मुझ पर थोपी गई लाँछन की तहरीर
    बदल दे तेरे हाथों की लकीर

    ....बहुत प्रभावी और सशक्त अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर

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