बुधवार, 29 सितंबर 2010

178. हँसी / Hansi (आशु कविता)

ऑरकुट पर अपनी दूसरी प्रोफाइल बनाते वक़्त यह रचना लिखी मैं बोलती गई और मेरा बेटा टाइप करता गया, क्योंकि एक शब्द भी टाइप करने में मैं बहुत वक़्त ले रही थी; उन दिनों अपने बेटे से ऑरकुट और टाइपिंग दोनों सीख रही थी पहली प्रोफाइल पर एक ऐसी घटना हुई कि उसे हटाना पड़ा लेकिन इस त्वरित (instant) कविता का जन्म हुआ अब लिखती तो शायद कुछ परिवर्तन ज़रुर होता, पर उस दिन आशु कविता पहली बार लिखी तो उसमें बदलाव करने का मन नहीं किया  कविता यथावत प्रस्तुत है

हँसी

*******

हँसी पे मत जाओ
बड़ी मुसीबत होती है
एक हँसी के वास्ते आँसुओं से मिन्नत
हज़ार करनी होती है 

जज़्ब न हो जाते आँसू जब तक
बड़ी मुश्किल होती है
एक हँसी के वास्ते तरक़ीबें
हज़ार करनी होती हैं

दिखे न मुस्कुराहट जब तक
बड़ी जद्दोज़हद करनी होती है
एक हँसी के वास्ते हँसी की ओट में ग़म 
हज़ार छुपानी होती है 

खिलखिलाती हँसी भी अजीब होती है
बड़ी दिक्कत से टिकी होती है
एक हँसी के वास्ते रब से दुआएँ
हज़ार करनी होती है 

हँसी पे मत जाओ
बड़ी ख़तरनाक भी होती है
एक हँसी के वास्ते जंग सौ
हज़ार गुनाह कराती है 

हँसी पे मत जाओ
बहुत रुलाती बड़ी बेवफा होती है
एक हँसी के वास्ते मौत
हज़ार मरनी होती है 

हँसी ख़ुदा की नेमत होती है
जिसे मिलती बड़ी तकदीर होती है
एक हँसी के वास्ते सौ फूल खिलाती
हज़ार ग़म भूलाती है 

- जेन्नी शबनम (18. 8. 2008)
______________________


Hansi

******

Hansi pe mat jaao
badi musibat hoti hai
Ek hansi ke waaste aansuon se minnat
hazaar karni hoti hai.

Jazb na ho jate aansoo jabtak
badi mushkil hoti hai
Ek hasi ke waste tarkibein
hazaar karni hoti hain.

Dikhe na muskuraahat jabtak
badi jaddozehad karni hoti hai
Ek hasi ke waste hansi ki oat me gham 
hazaar chhupaani hoti hai.

Khilkhilati hasi bhi ajeeb hoti hai
badi dikkat se tiki hoti hai
Ek hasi ke waste rab se duaayen
hazaar karni hoti hai.

Hansi pe mat jaao
badi khatarnaak bhi hoti hai
Ek hansi ke waaste jung sou
gunaah hazaar karaati hai.

Hansi pe matt jaao
bahut rulaati badi bewafa hoti hai
Ek hansi ke waaste mout
hazaar marni hoti hai.

Hansi khuda ki nemat hoti hai
jise milti badi takdeer hoti hai
Ek hansi ke waaste sou phool khilaati
gam hazaar bhoolati hai.

- Jenny Shabnam (18. 8. 2008)
_________________________

रविवार, 26 सितंबर 2010

177. दम्भ हर बार टूटा / dambh har baar toota (क्षणिका)

दम्भ हर बार टूटा

*******

रिश्ते बँध नहीं सकते, जैसे वक़्त नहीं बँधता
पर रिश्ते रुक सकते हैं, वक़्त नहीं रुकता
फिर भी कुछ तो है समानता
न दिखें पर दोनों साथ हैं चलते 
नहीं मालूम दूरी बढ़ी, या फ़ासला न मिटा
पर कुछ तो है, साथ होने का दम्भ हर बार टूटा 

- जेन्नी शबनम (8. 9. 2010)
____________________

dambh har baar toota

*******

rishte bandh nahin sakte, jaise waqt nahin bandhta
par rishte ruk sakte hain, waqt nahin rukta
fir bhi kuchh to hai samaanta
na dikhen par donon saath hain chalte
nahin maloom doori badhi, yaa faasla na mita
par kuchh to hai, saath hone ka dambh har baar toota.

- Jenny Shabnam (8. 9. 2010)
________________________

बुधवार, 22 सितंबर 2010

176. पलाश के बीज / गुलमोहर के फूल / palaash ke beej / gulmohar ke phool (पुस्तक - 21)

पलाश के बीज / गुलमोहर के फूल

*******

याद है तुम्हें
उस रोज़ चलते-चलते
राह के अंतिम छोर तक
पहुँच गए थे हम
सामने एक पुराना-सा मकान
जहाँ पलाश के पेड़
और उसके ख़ूब सारे, लाल-लाल बीज
मुट्ठी में बटोरकर हम ले आए थे
धागे में पिरोकर, मैंने गले का हार बनाया
बीज के ज़ेवर को पहन, दमक उठी थी मैं
और तुम बस मुझे देखते रहे
मेरे चेहरे की खिलावट में, कोई स्वप्न देखने लगे
कितने खिल उठे थे न हम!

अब क्यों नहीं चलते
फिर से किसी राह पर
बस यूँ ही, साथ चलते हुए
उस राह के अंत तक
जहाँ गुलमोहर के पेड़ों की क़तारें हैं
लाल-गुलाबी फूलों से सजी राह पर
यूँ ही बस...!
फिर वापस लौट आऊँगी
यूँ ही ख़ाली हाथ
एक पत्ता भी नहीं
लाऊँगी अपने साथ 

- जेन्नी शबनम (20. 9. 2010)
_______________________

palaash ke beej / gulmohar ke phool

*******

yaad hai tumhen
us roz chalte-chalte
raah ke antim chhor tak
pahunch gaye they hum
saamne ek puraana-sa makaan
jahaan palaash ke ped
aur uske khoob saare, laal-laal beej
mutthi mein batorkar hum le aaye they
dhaage mein pirokar, maine gale ka haar banaaya
beej ke zevar ko pahan, damak uthi thi main
aur tum bas mujhe dekhte rahe
mere chehre ki khilaavat mein, koi swapn dekhne lage
kitne khil uthe they na hum!

ab kyon nahin chalte
fir se kisi raah par
bas yun hi, saath chalte huye
us raah ke ant tak
jahaan gulmohar ke pedon ki qataaren hain
laal-gulaabi phoolon se saji raah par
yun hi bas...!
fir waapas lout aaoongi
yun hi khaali haath
ek patta bhi nahin
laaungi apne sath.

- Jenny Shabnam (20. 9. 2010)
_________________________

सोमवार, 20 सितंबर 2010

175. प्रिय है मुझे मेरा पागलपन / priye hai mujhe mera pagalpan

प्रिय है मुझे मेरा पागलपन

*******

क़ुदरत की बैसाखी मिली
मैं जी सकूँ ये क़िस्मत मेरी
इसीलिए ख़ुद से ज़्यादा 
प्रिय है मुझे मेरा पागलपन 
कुछ भी कर लूँ, माफ़ न करो
नहीं स्वीकार, कोई एहसान मुझे 
सच कहते हो, मैं पागल हूँ
होना भी नहीं मुझे, तुम्हारी दुनिया जैसा
मैं हूँ भली, अपने पागलपन के साथ 
कहते हो तुम
छोड़ आओगे मुझको, किसी पागलखाने में
आज अब राज़ी हूँ
इस दुनिया को छोड़, उस दुनिया में जाने को,
चलो पहुँचा दो मुझे
प्रिय है मुझे मेरा पागलपन!

- जेन्नी शबनम (7. 9. 2010)
_________________________

priye hai mujhe mera pagalpan

*******

qudrat ki baisaakhi mili
main ji sakun ye qismat meri,
isiliye khud se jyaada
priye hai mujhe mera pagalpan.
kuchh bhi kar loon, maaf na karo
nahin svikaar, koi yehsaan mujhe
sach kahte ho, main pagaal hun
hona bhi nahin mujhe, tumhaari duniya jaisa
main hun bhali, apne pagalpan ke saath.
kahte ho tum
chhod aaoge mujhko, kisi pagalkhaane mein
aaj ab raazi hun
is duniya ko chhod, us duniya mein jaane ko,
chalo pahuncha do mujhe
priye hai mujhe mera pagalpan!

- Jenny Shabnam (7. 9. 2010)
_______________________

बुधवार, 15 सितंबर 2010

174. मन भी झुलस जाता है (क्षणिका) / mann bhi jhulas jata hai (kshanikaa)

मन भी झुलस जाता है

*******

मेरे इंतिज़ार की इंतिहा देखते हो
या अपनी बेरुख़ी से ख़ुद ख़ौफ़ खाते हो
नहीं मालूम क्यों हुआ, पर कुछ तो हुआ है
बिना चले ही क़दम थम कैसे गए?
क्यों न दी आवाज़ तुमने?
हर बार लौटने की, क्या मेरी ही बारी है?
बार-बार वापसी, नहीं है मुमकिन
जब टूट जाता है बंधन, फिर रूठ जाता है मन
पर इतना अब मान लो, इंतज़ार हो या वापसी
जलते सिर्फ पाँव ही नहीं, मन भी झुलस जाता है 

- जेन्नी शबनम (13. 9. 2010)
_____________________

man bhi jhulas jata hai

*******

mere intizaar ki intihaan dekhte ho
ya apni berukhi se khud khouf khaate ho
nahin maalum kyon hua, par kuchh to hua hai
bina chale hi qadam tham kaise gaye?
kyon na dee aawaaz tumne?
har baar loutne ki, kya meri hi baari hai?
baar-baar wapasi, nahin hai mumkin
jab toot jata hai bandhan, phir ruth jata hai mann
par itna ab maan lo, intzaar ho yaa vaapasi
jalte sirf paanv hi nahin, man bhi jhulas jata hai.

- Jenny Shabnam (13. 9. 2010)
_________________________

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

173. अज्ञात शून्यता / agyaat shoonyata (पुस्तक - 109)

अज्ञात शून्यता

*******

एक शून्यता में प्रवेश कर गई हूँ
या कि मुझमें शून्यता प्रवाहित हो गई है,
थाह नहीं मिलता 
किधर खो गई हूँ
या जान-बुझकर खो जाने दी हूँ स्वयं को

कँपकँपाहट है और डर भी
बदन से छूट जाना चाहते, मेरे अंग सभी,
हाथ में नहीं आता कोई ओस-कण
थर्रा रहा काल, कदाचित महाप्रलय है!

मुक्ति की राह है
या फिर कोई भयानक गुफ़ा,
क्यों खींच रहा मुझे
जाने कौन है उस पार?
शून्यता है पर, संवेदनशून्यता क्यों नहीं?
नहीं समझ मुझे, यह क्या रहस्य है
मेरा या मेरी इस
अज्ञात शून्यता का 

- जेन्नी शबनम (14. 9. 2010)
_____________________

agyaat shoonyata

*******

ek shoonyata mein pravesh kar gai hun
ya ki mujhmein shoonyata pravaahit ho gai hai,
thaah nahin milta 
kidhar kho gai hun
ya jaan-bujhkar kho jaane dee hun svayam ko.

kanpkanpaahat hai aur dar bhi
badan se chhut jana chaahte, mere ang sabhi,
haath mein nahin aataa koi os-kan,
tharra raha kaal, kadaachit mahapralay hai!

mukti ki raah hai
ya fir koi bhayaanak gufa,
kyon kheench raha mujhe
jaane koun hai us paar?
shoonyata hai par, samvedanshunyata kyon nahin?
nahin samajh mujhe, yeh kya rahasya hai
mera ya meri is
agyaat shoonyata ka.

- Jenny Shabnam (14. 9. 2010)
__________________________

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

172. नज़्म को ठुकरा दिए वो / nazm ko thukra diye wo (तुकांत)

नज़्म को ठुकरा दिए वो

*******

सवाल-ए-वस्ल पर, मुस्कुरा दिए वो
हर बार हमें रुलाके, बिखरा दिए वो

शायरी में नज़्म कहके, सजाया हमें
अब इस नज़्म को ही, ठुकरा दिए वो

जाएँगे कहाँ, मालूम ही कब है हमको
गुज़रे एहसास को भी, बिसरा दिए वो

पूछने की इजाज़त, मिली ही कब हमें
कभी फ़ासला न सिमटे, पहरा दिए वो 

दर्द की बाबत, 'शब' से न पूछना कभी
वस्ल हो कि हिज्र, ज़ख़्म गहरा दिए वो 

- जेन्नी शबनम (7. 9. 2010)
_____________________

nazm ko thukra diye wo

*******

savaal-e-vasl par, muskura diye wo
har baar hamen rulake, bikhra diye wo.

shaayari mein nazm kahke, sajaaya hamen
ab is nazm ko hi, thukra diye wo.

jaayenge kahaan, maaloom hi kab hai hamako
guzre ehsaas ko bhi, bisra diye wo.

puchhne ki ijaazat, mili hi kab hamein
kabhi faasla na simte, pahra diye wo.

dard ki baabat, 'shab' se na puchhna kabhi
wasl ho ki hijra, zakhm gahra diye wo.

- Jenny Shabnam (7. 9. 2010)
________________________

रविवार, 5 सितंबर 2010

171. मेरी दुनिया / meri duniya (क्षणिका)

मेरी दुनिया

*******

यथार्थ से परे, स्वप्न से दूर
क्या कोई दुनिया होती है?
शायद मेरी दुनिया होती है 
एक भ्रम अपनों का, एक भ्रम जीने का
कुछ खोने और पाने का
विफलताओं में आस बनाए रखने का
नितांत अकेली मगर भीड़ में खोने का 
यह लाज़िमी है, ऐसी दुनिया न बनाऊँ तो जिऊँ कैसे

- जेन्नी शबनम (4. 9. 2010)
_____________________

meri duniya

*******

yathaarth se parey, swapn se door
kya koi duniya hoti hai?
shaayad meri duniya hotee hai.
ek bhram apnon ka, ek bhram jine ka
kuchh khone aur paane ka
vifaltaaon mein aas banaaye rakhne ka
nitaant akeli magar bheed mein khone ka.
yah lazimi hai, aisi duniya na banaaun, to jiyun kaise.

- Jenny Shabnam (4. 9. 2010)
________________________

शनिवार, 4 सितंबर 2010

170. अंतिम पड़ाव अंतिम सफ़र / antim padaav antim safar

अंतिम पड़ाव अंतिम सफ़र

*******

जाने कैसा भटकाव था, या कि कोई पड़ाव था
नहीं मालूम क्या था, पर न जाने क्यों था
मुमकिन कि वहीं ठहर गई, या शायद राह ही ख़त्म हुई 

दरख़्त के साए में, कुछ पौधे भी मुरझा जाते हैं
कौन कहे कि चले जाओ, सफ़र के नहीं हमराही हैं
वक़्त की मोहताज़ नहीं, पर वक़्त से कब हारी नहीं?

चलो भूल जाओ काँटों को, ज़ख्म समेट लो
सिर पर ताज हो, और पाँव में छाले हों
हँसते ही रहना फिर भी, शायद यह अभिशाप हो

वादा किए हो, मन में हँसी भर दोगे
उम्मीद ख़त्म हुई ही कहाँ
अब भी इंतज़ार है,
कोई एक हँसी, कोई एक पल
वो एक सफ़र, जो पड़ाव था
शायद रुक जाएँ, हम दोनों वहीं,
उसी जगह गुज़र जाए
पहला और अंतिम सफ़र 

- जेन्नी शबनम (3. 9. 2010)
____________________

antim padaav antim safar

*******

jaane kaisa bhatkaav tha, ya ki koi padaav tha
nahin maloom kya tha, par na jaane kyon tha
mumkin ki vahin thahar gai, ya shaayad raah hi khatm hui.

darakht ke saaye mein, kuchh poudhe bhi murjha jaate hain
koun kahe ki chale jaao, safar ke nahin humraahi hain
vakt kee mohtaaz nahin, par vaqt se kab haari nahin?

chalo bhool jaao kaanton ko, zakhm samet lo
sir par taaj ho, aur paanv mein chhaale hon
hanste hi rahna fir bhi, shaayad yah abhishaap ho.

vaadaa kiye ho, mann mein hansi bhar doge
ummid khatm hui hi kahaan
ab bhi intzaar hai,
koi ek hansi, koi ek pal
wo ek safar, jo padaav tha
shaayad ruk jaayen, hum dono vahin,
usi jagah guzar jaaye
pahla aur antim safar.

- Jenny Shabnam (3. 9. 2010)
_______________________

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

169. छोटी-सी चिड़िया / chhoti-see chidiya

छोटी-सी चिड़िया

*******

स्वरचित घोंसले में अपने
दाना-पानी जोड़, जीवन भर का
थी निश्चिन्त, छोटी-सी चिड़िया

सोचा, अब चैन से जी लूँ ज़रा
मन-सा एक साथी पा
थी ख़ुशहाल, छोटी-सी चिड़िया

पहले झंझावत में ही, घोंसला टूटा
उड़ गया साथी, उसके मन का
रह गई अकेली, छोटी-सी चिड़िया 

सपने टूटे, अपने छूटे
न दाना, न ठिकाना
हुई बदहाल, छोटी-सी चिड़िया 

साँसें अटकी, राहें तकती
कोई तो बटोही, पार लगाए
हुई अशक्त, छोटी-सी चिड़िया 

ख़ुद से रूठी, साँसें उड़ गई
ख़त्म हुई, उसकी कहानी
सभी भूले, छोटी-सी चिड़िया 

- जेन्नी शबनम (28. 8. 2010)
______________________

chhoti-see chidiya

*******

swarachit ghosle mein apne
dana paani jod, jivan bhar ka
thee nishchint, chhoti-see chidiya.

sochi, ab chain se ji lun zara
mann sa ek saathi paa
thee khush.haal chhoti-see chidiya.

pahle jhanjhaawat mein hi, ghonsla toota
ud gaya saathi, uske mann ka
rah gai akeli, chhoti-see chidiya.

sapne toote, apne chhute
na daana, na thikaana
hui bad.haal chhoti-see chidiya.

saansein atki, raahein takti
koi to batohi, paar lagaaye
hui ashakt, chhoti-see chidiya.

khud se roothi, saansein ud gai
khatm hui, uski kahaani
sabhi bhoole, chhoti-see chidiya.

- Jenny Shabnam (28. 8. 2010)
_________________________

बुधवार, 1 सितंबर 2010

168. क्या मैं आज़ाद हूँ / Kya main aazaad hoon

क्या मैं आज़ाद हूँ

***

"क्या मैं आज़ाद हूँ?"
यह प्रश्न अनुत्तरित है
और एहसास अन्तस् की अव्यक्त पीड़ा
महज़ सीमित हैं 
संविधान के पन्नों में सिमटी आज़ादी और स्वतंत्रता
हम जीवित इन्सानों की हर आज़ादी पर
है अंकुश का आघात बड़ा

सबने कहा, सबसे सुना
कहते ही रहे हैं हम सदा
मैं आज़ाद हूँ, वह आज़ाद है, हम आज़ाद हैं
पर दिखी नहीं कभी इन्सानों की आज़ादी
उनकी चेतना और मन की आज़ादी
हर इन्सान को
अपने धर्म, संस्कार, परम्परा और रिश्तों में
घुटता पाया क़ैदी

क़ौमों और सियासत की जंग में
हर आम इन्सान है जकड़ा
जज़्बात और धर्म पर पहरा
मन की अभिव्यक्ति पर पहरा
तसलीमा और मक़बूल जैसों पर
देशद्रोही और फ़तवा का क़हर है बरपा
दुश्मनों की क्या बात करें
दोस्तों को ज़बह करते देखना भी है सदमा

धर्मों और रिवाजों पर बलि चढ़ते
हम मूक संस्कारों को हैं देखते
अस्मत और क़िस्मत को लुटते-बचते
हर लम्हा हम कितना हैं तड़पते
रात को चैन की नींद सो सकें
हम अपने घरों में ख़ौफ़ से हैं गुज़रते
देश के प्रहरी मुल्कों से ज़्यादा
अपने घर को आतंक से बचाने में
रात जागते, जान हैं गँवाते

एक रोटी के वास्ते नीलाम होती है संतान
और बन्धक बनता है इन्सान 
एक रोटी के वास्ते वतन त्यागता
धर्म बदलता और बदलता अपना ईमान है इन्सान 
एक रोटी के वास्ते कचरे से जानवरों संग
जूठन बटोरता भूखा-लाचार है इन्सान 
एक रोटी के वास्ते 
अपनों के ख़ून का प्यासा बन जाता है इन्सान

न पूछना है, न कहना है
"क्या मैं आज़ाद हूँ"
क़ुबूल नहीं हमें ये आज़ादी
कुछ कर गुज़रना है कि हम मान सकें
''मैं आज़ाद हूँ!''

-जेन्नी शबनम (5.10.2008)
____________________

Kya main aazaad hoon

***

"Kya main aazaad hoon?"
yeh prashna anuttarit hai
aur ehsaas antas ki avyakt peeda
mahaz seemit hain 
samvidhaan ke pannon mein simtee aazaadi aur swatantrata
hum jiwit insaano ki har aazaadi par
hai ankush ka aaghaat bada.

Sabne kaha, sabse suna
kahte hi rahe hain hum sada
mai aazaad hoon, wah aazaad hai, hum aazaad hain
par dikhi nahi kabhi insaano ki aazaadi
unki chetna aur mann ki aazaadi
har insaan ko
apne dharm, sanskar, parampara aur rishton mein
ghutata paya qaidi.

Qaumo aur siyasat ki jung mein
har aam insaan hai jakda
jazbaat aur dharm par pahra
mann ki abhivyakti par pahra
Taslima aur Maqbool jaison par
deshdrohi aur fatwa ka qahar hai barpa
dushmano ki kya baat karen
doston ko zabah karte dekhna bhi hai sadma.

Dharmon aur riwajon per bali chadhte
hum mook sanskaron ko hain dekhte
asmat aur qismat ko lut.te-bachate
har lamha hum kitna hain tadapte
raat ko chain ki neend so saken
hum apne gharon mein khauff se hain guzarte
desh ke prahari mulkon se zyada
apne ghar ko aatank se bachane mein
raat jagte, jaan hain ganwaate.

Ek roti ke waste neelaam hoti hai santaan 
aur bandhak banta hai insaan
ek roti ke waste watan tyagta
dharm badalta aur badalta apna iimaan hai insaan
ek roti ke waste kachre se jaanvaro sang
joothan batorta bhukha-laachaar hai insaan
ek roti ke waste 
apno ke khoon ka pyasa ban jata hai insaan.

Na puchhna hai, na kahna hai 
"kya main aazaad hun"
qubool nahi hamein ye aazaadi
kuchh kar gujarna hai ki hum maan saken 
"main aazaad hun!"

-Jenny Shabnam (5.10.2008)
________________________